"दुःख काहे का. असर हो या न हो लेकिन हम अमर होते हैं, पीढ़ी दर पीढ़ी चलते हैं. सिर्फ किरदार बदलते हैं लेकिन नारा हमेशा अमर रहता है" "जब तक सूरज चाँद रहेगा, नारे तेरा नाम रहेगा" . नारे ने जोर से नारा लगाया.
"सदियाँ बीत गयीं तुमेह सुनते हुए. हर आदमी के तुम हो जाते हो. चाहे उन्हें तुम्हारी ज़रूरत हो या न हो. तुम मानो या न मानो कई फ़ालतू लोगों को सर चढ़ाने के ज़िम्मेदार हो तुम सब".
"हम बनाये ही इसी लिए गयें हैं. जब तुम्हारी ख्वाईशें हद से बढें तो हम आकर तुमेह एक ज़रूरतमंद होने का एहसास कराएं और तोड़ दें सब जंजीरें जो एक सफल आदिम समाज के लिए ज़रूरी हैं" नारे ने अपनी अभिव्यक्ति दी.
"लेकिन तुम सब तो प्रतिबंधित हो. सरकार ने तुम्हारी संस्था को एक आतंकवादी संगठन घोषित किया है. तुमसे राबता रखने वाला हर शख्स देशद्रोह के मुक़दमे से गुजरेगा. तुम भी तो देश से भागे हुए हो. सरकार ने तुमेह भी तो भगोड़ा घोषित किया है. तुम्हारी खबर देने वाले पर इनाम भी रख छोड़ा है .".
"अपने लफ़्ज़ों को जुबां देना कोई आतंक नहीं है. जब जब एहसास पे पहरा होता है तब तब एहसास एक नयी ज़ुबान से सामने आता है. तुम देखो , क्या तुम्हारे चारों और वैसा हो रहा है, जैसा तुम चाहते थे? क्या वो एहसास तुम्हारे दिल में अभी भी धडकता है जिसे तुम पहरों सोचा करते थे? शायद नहीं. इसी लिए तो हम पिरोये जाते हैं ताकि तुम जैसे करोड़ों आदमी अपनी व्यथा कह सकें. और मैं मुखिया हूँ. मुखिया का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पता. और छुपा भी ऐसी जगह हूँ जहां तुम्हारी सरकार चाहे तो भी नहीं ढून्ढ सकती. दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है मेरे भाई. अब भी वक़्त है, आओ हम मिल जाएँ." नारे ने ठहाका लगाया.
"लेकिन! मैं किसी काम का नहीं. एक आम आदमी की तरह मेरे अपने जाती स्वार्थ हैं, मजबूरिया हैं. तुम्हारे साथ चलूँगा तो घर वालों का क्या होगा. बिजली का बिल नहीं दिया तो बत्ती गुल हो जाएगी. किराने वाले का पिछले महीने का हिसाब बाकी है."
"बेजुबान आदमी मुर्दाबाद"
"आम आदमी मुर्दाबाद"
"जो नारों के हित की बात करेगा, वोही देश पर राज करेगा"
नारा नारे लगाता हुआ उसके कमरे से बाहर चला गया. उसने उठ कर माथे पर चुहचुहा आयीं पसीने की बूंदों को आस्तीन से पोंछा. रुमाल रखने की आदत उसे थी नहीं कभी. घडी देखी तो वक़्त वोही १:५८ था. २ बजने में २ मिनट .
-२-
"कितना अच्छा हो ग़र हमारा भी घर गंगा के तट पर हो" अनीता ने उंगली से बालू पर कुछ लिखते हुए कहा.
एक क़ब्रिस्तान में घर मिल रहा है
जिसमें तहख़ानों में तहख़ाने लगे हैं.
बेजुबान आदमी को शायद कुछ देर के लिए दुष्यंत से ज़ुबान मिली.
"यह किताबी बातें मेरी समझ में नहीं आतीं" लड़की ने कहा.
"चलो गंगा किनारे टहलते हैं". बेजुबान आदमी फिर बोला
"कितना अच्छा हो यूँ ही हाथ में हाथ डाले चलते रहें." लड़की ने कुछ करीब होते हुए कहा.
"ओस कितनी भी दिलकश क्यूँ न हो , लेकिन प्यास कभी नहीं बुझाती."
"तुम ज़ल्दी से कमाई का कुछ वसीला करो. वरना मेरे हाथों में गैरों की चूड़ियाँ ख्न्ख्नायेंगी और पायलें किसी और घर आँगन में छन छन" लड़की ने कुछ संजीदा होते हुए कहा.
"तुमने सही कहा. ज़िन्दगी जीने के लिए कुछ चीज़ें हमेशा दरकार होती हैं. सचे प्यार के झूठे दिलासों से ज़िन्दगी नामुमकिन के सिवा कुछ भी नहीं." बेजुबान आदमी के होंट फिर थिरके.
"टाइम क्या हुआ?"
"२ बजने में दो २ मिनट". उत्तर मिला
उसके माथे पर फिर पसीना उभरने लगा. रुमाल शायद फिर घर में ही रह गया था.
-३-
"उठो, तुमेह अदालत चलना है ". प्यादे ने उसे उठाया.
एक कटघरे में मुजरिम को भाँती उसे खड़ा कर दिया गया. जब उसे मुकदमे की किस्म के बारे में बताया गया तो उसके पांव के नीचे से ज़मीं खिसक गयी. किराने वाला आवाजें लगता हुआ उसके पीछे भागने लगा. बिजली वाले प्लास ले के उसके घर की बत्ती काटने में जुट गए. उसपर देशद्रोह का मुकद्दमा शुरू किया जाने वाला था.
"मी लोर्ड , यह कटघरे में खड़ा मुजरिम जनाब 'bezubaan आदमी' कोई साधारण मुजरिम न होकर एक निहायत खतरनाक किस्म का मुजरिम है. " सरकारी वकील ने जज से मुखातिब हो कर कहा." इसने न केवल प्रतिबंधित नारों की संस्था के मुखिया से गुपचुप मुलाकात की बल्कि उसके साथ मिल कर देश के खिलाफ एक षड्यंत्र रचा है. यह इस देश की अखंडता और सम्प्रभुता के खिलाफ एक युद्ध की साजिश है".
" नहीं, योर ओनोर , मेरा मुवक्किल 'बेज़ुबान आदमी' एक शांति पसंद नागरिक होने के साथ एक पढ़ा लिखा नोजवान भी है. अभियोग साबित होने से पहले उसे मुजरिम कहना सरासर नाइंसाफी है और कुछ नहीं. मेरे मुवक्किल ने न तो किसी नारों के मुखिया से बात की है और न ही किसी तरह की साजिश". वकील ऐ सफाई ने सरकार को जवाब दिया.
"नहीं, अदालत ऐ आलिया, अब जब की घिसे पिटे नारों को इस देश के संविधान से निकाल दिया गया है और उन्हें बोलने वाले को देशद्रोह की सज़ा मिलती है तब भी 'बेज़ुबानआदमी ने सड़कों पर नारे लगाने की हिम्मत की. सरकार ने ऑरकुट और फेसबुक जैसे इन्टरनेट साईट्स को मानयता दी है की हर आदमी सरकार के खिलाफ अपनी भड़ास उनके ज़रिये निकाले. सड़कों पर घिसे पिटे नारे लगाने वालो के खिलाफ सरकार को अस्थिर करने और देश द्रोह का मुक्द्म्मा चलाया जायेगा इसके बावजूद 'बेज़ुबान आदमी ने पिछले सोमवार को न केवल चण्डीगढ़ मटका चौक पर नारे लगाये बल्कि उसी दिन इसने संसद का घेराव भी किया" सरकार ने अपनी दलील दी.
"मेरा मुवक्किल पिछले सोमवार को एक सरकारी दफ्तर में चपरासी की नौकरी के लिए interview देने गया था" वकील ऐ सफाई ने कहा.
"इतना पढ़ा लिखा आदमी चपरासी की नौकरी के लिए जाए , यह अदालत को बहकाने की कोशिश के इलावा कुछ भी नहीं" सरकार चिल्लाई.
"जज साब, इस केस में नारों के मुखिया से पूछ ताछ लिए बगैर कोई नतीजा नहीं निकलेगा"
"पर वो तो भगोड़ा है. और ऐसी जगह है जिस मुल्क के साथ हमारी प्रत्यर्पण संधि नहीं है. उसे लाना मुश्किल है".
"जब अबू सलेम जैसे डान को लाया जा सकता है तो एक अदना सा मुखिया क्या चीज़ है. मैं अदालत से दरख्वास्त करूँगा की यह केस सी.बी. आई को सोंपा जाये ताकि एक बेगुनाह आदमी देशद्रोह के मुकदम्मे से बच सके." वकील ऐ सफाई ने कहा.
"अदालत, यह केस सी.बी. आई को सोंपती है और हुक्म देती है की अगली तारीख से पहले नारों के मुखिया को अदालत में हाज़िर किया जाए. अदालत अगली तारीख तक के लिए मुल्तवी की जाती है" जज ने हथोडा मार कर अदालत मुल्तवी कर दी.
-४-
"मुझे न तो सी.बी. आई वाले ला सकते हैं न उनका बाप. मैं तो आजाद हूँ. दबाये गए एहसास मरते नहीं हैं न पकडे जाते हैं. वो सिर्फ शक्लें बदलते हैं. उस अदालत में भी कुछ नारे भेस बदल कर मुझे पल पल की खबर दे रहे थे" नारे की तल्ख़ आवाज़ से कमरे में गूंजी.
"तुम मेरे पीछे क्यूँ पड़े हो. मेरे सामने पूरी ज़िन्दगी है. मुझे घर बसाना है और भी कई काम हैं"
"बेज़ुबानआदमी की कोई ज़िन्दगी नहीं होती. वो सिर्फ नारे लगाने के लिए पैदा होता है और नारे लगाता ही मर जाता है. मेरा साथ न देकर तुम उस खुदा की तौहीन कर रहे हो जिसने तुमेह इस काम के लिए पैदा किया" नारे की आवाज़ में तल्खी बढ़ी. "जाओ तुमेह फिर अदालत में हाज़िर होना है".
"सी.बी. आई नारों के मुखिया को इस अदालत में हाज़िर करवाने में नाकामयाब रही है. लेकिन इस से बेजुबान आदमी का कसूर कम नहीं हो जाता. बेज़ुबान आदमी ने घिसे पिटे पुराने नारे लगा कर न केवल सरकार और देश के खिलाफ जंग का एलान किया है बल्कि इस ने कई सदियों से सोये हुए आम आदमी की नींद में खलल भी डाला है. जाहिर तौर पर उसका यह गुनाह नाकाबिल ऐ माफ़ी है. तो अदालत बेज़ुबान आदमी को मौत की सजा का हकदार मानते हुए उसे सज़ा ऐ मौत तजवीज़ करती है. लेकिन बेज़ुबान आदमी के दिमागी तवाज़ुन को ध्यान में रखते हुए उसे अपनी मौत का तरीका चुनने की आज़ादी भी देती है.
या वो ज़हर का प्याला पी जाये, या सलीब पर लटक जाए या फिर फांसी का फंदा चूम ले." जज ने एक तरफ़ा फैसला सुनाया.
" अब सुकरात बनोगे या ईसा. भगत सिंह भी बन सकते हो. फैसला तुम्हारा है. लेकिन याद रखना इन बातों से सच को ताबानी नहीं मिलेगी न ही सोये हुए आदमी के सपनों को. ताबानी तो लहू में है. जब तक बहेगा नहीं लालगी कहाँ से आएगी. महत्व तो इनकार करने में है , मानने में नहीं. मरना तो तुमेह है ही , तो क्यों न एक इनकारी की मौत मरो. इकरारी की मौत कोई मौत नहीं होती" नारे ने उसे हिकारत से देखते हुए कहा.
"मेरी इस मौत के ज़िम्मेदार भी तुम हो. गुनाहगार तुम हो सज़ा मुझे तजवीज़ की गयी है" बेज़ुबान आदमी चिल्लाया.
"शायद किताबी बातों ने तुम्हारा दिमागी तवाज़ुन गैरमामूली तौर पर हिला दिया है. तुमने शायद पढ़ा नहीं 'समर्थ को नहीं दोष गोसाईं''. मैं समर्थ हूँ और मुखिया हूँ. हो तुम भी सकते थे लेकिन तुमेह अपने घर की बिजली और किराने वाले की चिंता अपने टूटे हुए सपनों से ज्यादा है."नारा फिर हिकारत की हंसी हँसा.
"लेकिन मैं इकरारी नहीं था"
"अब तो हो गए हो. आओ सुलह कर लो हमसे. खासियत इनकार में ही है जो अपने साथ फिर एक आस का सूरज ले के आती है. इकरार तो एहसास को मारने का ज़रिया है.इकरार पहले कशिश का क़त्ल करता है और क़त्ल होती कशिश एहसास का दम घोंट देती है . अनीता से तुमने इकरार किया अब उसकी हंसी किसी और के आँगन में गूंजती है. अगर तुम इनकारी होते तो वो मरते दम तक तुम्हारा इंतज़ार करती.
बेज़ुबान आदमी ने अपना हाथ नारे की तरफ बढाया. बर्फ जैसे ठन्डे हाथ को नारे ने पकड़ कर उसे उठाया और बेज़ुबानआदमी ने कहा.........
"जो नारों के हित की बात करेगा, वोही देश पर राज करेगा"
-५-
बेज़ुबान आदमी फरार है. ज़हर के प्याले, सलीबें और फांसी के फंदे उसे ढून्ढ रहे हैं. सड़कें लहू के लाल रंग से ताब पा रही हैं. और आज भी कुछ लोगों को चूड़ियों की खनखन और नारों के तेज़ शोर के बीच दो साये हाथ में हाथ डाले गंगातट पर रात रात भर चलते दिखाई देते हैं............................