Sunday, November 21, 2010

रद्दी

सफर करना अगर मज़बूरी नहीं तो पेशे का हिस्सा है. तरह तरह के शख्स मिलते हैं....अदबी आँख सब को नहीं तो कुछ को पहचान लेती है. कल भी एक शख्स मिले ........बात पैसों से शुरू हो कर रुपयों तक आकर ख़तम हो जाती........ मेरा सरमाया पूछने लगे तो बता दिया कि बैंक में चंद हिन्दुस्तानी रूपए पड़े हैं.......कुछ अलमारिया भरी हैं किताबों से ...... हिन्दुस्तानी थे तो मुफ्त कि सलाह दिए बिना  कैसे रहते ....कहने लगे रुपयों से जग चलता है..... कुछ बचा लो ज़रूरत पड़ने पर काम आयेंगे...... किताबों के बारे में बहुत अच्छी राय दी .......कहा कि यह दीवाने ग़ालिब जो आपने ढाई सौ रुपयों में लिया........रद्दी में इसकी कीमत ३ रुपयों से ज्यादा नहीं होगी......रद्दी का भाव आज कल ५ रूपए फी किलो है...........कल से इसी हिसाब में मुब्तिला हूँ कि ज़रूरत पड़ने पर इस रद्दी से कितने पैसे वसूल कर पाऊंगा...........

1 comment:

  1. मन को छू गयीं यह भावना ..ग़ालिब की किताब और रद्दी के भाव ?

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