कहीं टूट कर बिखर गया तो
मुश्किल हो जायेगा,
नंगी उंगलीओं से किरचों को चुनना
और अंगड़ाई भी मत ले
और अंगड़ाई भी मत ले
कहीं उधड गयी पोशिश की सीवन,
तो कम पड़ जायेगा धागा तुरपाई के लिए
पर समझता कहाँ है वो,
रूठ के बैठ जाता है किसी कोने में
और कूदने फांदने लगता अपनी धुन में
अपनी ही ज़िद में
अपनी ही ज़िद में
टूट कर बिखरता तो नहीं ,
पर अक्सर उधेड़ लेता है पोशिश की सीवन
और कम पड़ने लगता है मुझे,
हर बार धागा तुरपाई के लिए
कुछ ख़वाब बहुत जिद्दी होते हैं ...............
पर 'समझता' कहाँ है वो...
ReplyDeleteकूदने फांदने लगता अपनी धुन में
अपनी ही ज़िद में
टूट कर बिखरता तो नहीं ,
पर अक्सर उधेड़ लेता है पोशिश की सीवन
और कम पड़ने लगता है मुझे,
हर बार धागा तुरपाई के लिए...
यहाँ..
इंतज़ार तो था ,, कुछ ऐसा पढने का ,,,
"आखिर... दिल ही तो है..."
लेकिन
कुछ ख़वाब बहुत जिद्दी होते हैं ...
वाक़ई ...हैरान कर गया !
("कुछ ख्वाब" ...कहा है, तो 'गया' को 'गए' ,
'समझता'को 'समझते','लगता है' को 'लगते हैं'kahiye ,
क्योंकि "कुछ ख्वाब" बहुत जिद्दी "होते हैं "...)
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ....मैंने भी लिखी थी ख्वाब है कि जिद्दी बच्चा ....
ReplyDeleteकुछ ख़वाब बहुत जिद्दी होते हैं ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति|