Sunday, December 26, 2010

वो लम्हा

एक ख्वाब इक लम्हा  


छुप गया था कहीं मेरी बाहों में


न कोई शोर
न सरगोशी


न किसी लम्स कि हरारत


अलसाया , उनींदा सा


ले के करवट मेरी तरफ


हर लम्हा खुद से ही छुपने कि कोशिश में


आँखें नम कर गयी यह नाराज़ी उसकी 


फिर उठा तो बाहों में ले के बोला


यूँ नम न किया करो आँखें


मैं तो खुद ही तुम में हूँ
और......................




तुम कब जुदा हो खुद से..............

8 comments:

  1. बहुत खूबसूरत नज़्म ....


    यहाँ आपका स्वागत है

    गुननाम

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  2. एक लम्हा खुद से ही छुपने की कोशिश में है ...बेहतरीन अभिव्यक्ति !

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  3. is lamhe ko jeena achha lagta hai, yahi lamha apna hota hai ....

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  4. क्या खूब ख्वाबो को पिरोया है।

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  5. लम्हे जो जी लिए गए .. सबकुछ हैं!!!
    सुन्दर!

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  6. लम्हों की लुका छिपी , नाराजगी और मनुहार ...
    सुन्दर !

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  7. दिल को छूने वाली खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  8. आप को सपरिवार नव वर्ष २०११ की ढेरों शुभकामनाएं.

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