छुप गया था कहीं मेरी बाहों में
न कोई शोर
न सरगोशी
न किसी लम्स कि हरारत
अलसाया , उनींदा सा
ले के करवट मेरी तरफ
हर लम्हा खुद से ही छुपने कि कोशिश में
आँखें नम कर गयी यह नाराज़ी उसकी
फिर उठा तो बाहों में ले के बोला
यूँ नम न किया करो आँखें
मैं तो खुद ही तुम में हूँ
और......................
तुम कब जुदा हो खुद से..............
बहुत खूबसूरत नज़्म ....
ReplyDeleteयहाँ आपका स्वागत है
गुननाम
एक लम्हा खुद से ही छुपने की कोशिश में है ...बेहतरीन अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteis lamhe ko jeena achha lagta hai, yahi lamha apna hota hai ....
ReplyDeleteक्या खूब ख्वाबो को पिरोया है।
ReplyDeleteलम्हे जो जी लिए गए .. सबकुछ हैं!!!
ReplyDeleteसुन्दर!
लम्हों की लुका छिपी , नाराजगी और मनुहार ...
ReplyDeleteसुन्दर !
दिल को छूने वाली खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
आप को सपरिवार नव वर्ष २०११ की ढेरों शुभकामनाएं.
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