Tuesday, January 11, 2011

एक लम्बे ख्वाब के सफ़र पर...........

आओ चलें उस लम्बे ख्वाब के सफ़र पर
जिसके एक छोर पर
उफक पर ठहरा हुआ सूरज
गुरूब होने से मुनकिर है
और चाहता है कि हाथों में हाथ डाले
चलते रहें  हम
ज़हन  में कुछ अधूरे ख्वाब
कुछ पुरकशिश ख्वाहिशें  लिए
उसकी जानिब
तारीक करना है उसे मंज़र
हमारे इस सफ़र के बाद
पर न जाने क्यूँ 
मन एक बेईमान की तरह
हाइल है कारोबार में कायनात  के


कुछ देर ठहर जाओ यहीं
उंगलिया  बिछड़ने से इंकार  करतीं  हैं  

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