और बीनती रहती है चंद ताज़ा मोती
छुपा लेता हूँ पलकों को उंगलीओं से
कभी आस्तीन से
कहीं चुन्धियाँ न जायें
काएनात की आँखें
और सोख ले
आस्तीन वो ताज़ा मोती
और.... चाहता हूँ
वो आरज़ू
वो आरज़ू
यूँ ही पलकों पे हर शाम खेलती रहे
यूँ ही ताज़ा मोतीओं से बहलती रहे
बहुत खूबसूरत एहसास
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