Sunday, November 21, 2010

इन्कलाब

आज एक दोस्त से मैखाने  में मुलाक़ात हुई ........शराब और शायरी का चोली दामन का साथ है इसलिए शे'र कहना लाजिम था चाहे तल्फुज़ ठीक  हो  या  न हो .......जनाब ने फ़रमाया
चंद तस्वीरें बुतां चंद हसीनो के खतूत 
बाद मरने के मेरे घर से ये सामां निकला

शायर गुनाहगार भी लगा और पलायनवादी भी..........लम्बी फेहरिस्त है गुनाहगारों की.....क्यूंकि मेरा भी नाम शामिल है इस में....... आवाम मैखानों में शराब के आंसू पी रही है...........शायर न हालात पे रंजीदा है न ही संजीदा ...........एक सवाल ज़हन को कचोट रहा है कि मरने पर..........
शायर के घर से इन्कलाब क्यूँ नहीं निकलता
बगावत लेखक के घर पैदा क्यूँ नहीं होती...............?????

3 comments:

  1. शायर के घर से इन्कलाब क्यूँ नहीं निकलता
    बगावत लेखक के घर पैदा क्यूँ नहीं होती....

    शायर के घर से इन्कलाब भी निकलता है बशर्ते वो देश और समाज से प्रेम करें तो ...

    बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  2. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति|

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  3. हालात बहुत उदास हैं....पर इस पोस्ट को पढ़ कर मज़ा आ गया.....लगता है अब शायर के घर से इन्कलाब भी निकलेगा और वो भी जल्द...

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