धुआं ठहरता कहाँ है मुट्ठी में,
बाँधने वाले अजीब होते हैं,
जब भींच लो ज़रा जोर से ,
निकलने लगता है,
उंगलीओं के वक्फों से,
कुछ लकीरों की सूरत,
न कोई नक्श - ए- पा
न कोई वजूद का सुराग,
रह जाती है बस महक हाथों और नथुनों में,
पुन्ग्र्ती हैं जिस से कोंपलें
हर बदलते हुए मौसम के साथ
रख लो चंद लफ्ज़ मेरे
मुट्ठी में अपनी ,
गाहे बगाहे सफ़र में काम आयेंगे .
बाँधने वाले अजीब होते हैं,
जब भींच लो ज़रा जोर से ,
निकलने लगता है,
उंगलीओं के वक्फों से,
कुछ लकीरों की सूरत,
न कोई नक्श - ए- पा
न कोई वजूद का सुराग,
रह जाती है बस महक हाथों और नथुनों में,
पुन्ग्र्ती हैं जिस से कोंपलें
हर बदलते हुए मौसम के साथ
रख लो चंद लफ्ज़ मेरे
मुट्ठी में अपनी ,
गाहे बगाहे सफ़र में काम आयेंगे .
Very nice lines.
ReplyDeleteरख लो चंद लफ्ज़ मेरे
ReplyDeleteअपनी मुट्ठी में
गाहे ब गाहे सफ़र में काम आएँगे ....
धुएँ की लकीरों से...
उँगलियों के वक्फ़ों से गुज़र
ज़िंदगी के किसी ख़ास मक़ाम की जानिब
ले जाते हुए असरदार लफ़्ज़,,,
आपकी सोच की पुख्तगी को ही दर्शाते हैं जनाब !
मुबारकबाद .
रख लो चंद लफ्ज़ मेरे
ReplyDeleteअपनी मुट्ठी में
गाहे ब गाहे सफ़र में काम आएँगे ...
Bahut khoobsurat ehsaas....ek gehri soch.....Ma Saraswati hamesha aap ki kalam mein Virajmaan rahe ye dua hai....Aameen