Thursday, September 2, 2010

उसको उदास देख कर .....

कोई तारा टिमटिमा नहीं रहा, चाँद भी आता है तो ज़र्द सा चेहरा लिए,
न बाद ऐ सबा में वो रफ़्तार है,
न बादलों से उतरता कोई आबशार है,
ज़र्द सा इक मंज़र है चारों तरफ फैला हुआ,
गर्द ही गर्द है फ़ज़ा में  बिखरी हुई,
बहुत दिनों से नहीं देखी  कोई सुबह निखरी हुई,
ग़म और ख़ुशी किसी के बस में नहीं होती,
हरेक बात इन्सान की दस्तरस में नहीं होती,
तुम उदास न हुआ करो 
मेरी खातिर
रुक जाता है 
कारोबार कायनात का

इक तुम्हारे उदास होने से 

4 comments:

  1. khair jo sunne me maja tha wo padne me kaha....phir bhi achcha hain tumne ise post to kya agar post na karte to na-insaafi hoti.Meri tarraf se tumhe........."Sab kuch agar ye Chahara kehta,toh phir zubaan ki jarrurat kya thi."

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