Tuesday, September 14, 2010

एहसास

न लाया करो ऐसे ख़यालात  दिल में,
जो कर देते हैं  मुनकिर,
कभी तुमको मुझसे,
कभी तुमको खुद से,
और उस एहसास से 
जो दिन भर की मस्रुफ़िअत  से 
चुरा कर चंद लम्हे बन जाता है
बाइस ऐ ज़िन्दगी
वो एहसास  दौड़ता है जो
एक सा दोनों की रगों में
और सुन लेता है दिल धडकने की सदा भी
हर बार.........
क्यूँ उलझ जाती हों बारहा 
नाम ढूँढने में रिश्तों के
और परखने लगती हो
एक पाकीज़ा एहसास की शिद्दत 




कम उड़ाया करो 
अपने ज़हन के परिंदों को
दूर कर देते हैं तुमेह मुझसे
जब जब परवाज़ मिलती है इन्हें 

1 comment:

  1. yeh parinde tum se is kadar bandhe hain ke ek parwaj ke baad phir se wahin laut aate hain, ek na najar aane wala pinjra bandhe hai inhe, laut kar fir usi ke ho jaate hain.
    any way jiske liye likha hai usne padha k nahi

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