Sunday, May 22, 2011

एक ठहरा हुआ वर्तमान .............


कुछ देर पहले बरसात हुई......सारा आलम भीगा


 भीगा है....छत पर बैठा हुआ तारों को देख रहा 


था....'अरिहा' (मेरी छोटी सी बेटी) को भी 


दिखाए......पास के प्लाट में बंजारे अपने लोकगीत गा 


रहे थे.....दूर कहीं रेडिओ पर 'भूपिंदर' का गीत चल 


रहा था ' दिल ढूँढता है फिर वोही.........' बीवी को 


कहा प्लाट में देखे कितने अच्छे लगते हैं बंजारे गाते 


हुए....' और गीत भी कितना मोजूं है इस आलम 


में''............बीवी बोली 'की हो गया तुहानू...किहड़ा 


प्लाट...किहड़े बंजारे.....किहड़ा रेडियो''..... न ताँ पूरे 


मोहल्ले'च कोई प्लाट है न बंजारे ते रेडियो लोकां नु 


सुट्टे मुद्दत हो गयी'..........


शायद वर्तमान २२ साल पहले से ही कहीं रुका हुआ है .................

1 comment:

  1. उफ़ …………क्या खूब कहा है। ये कहाँ आ गये हम यूँ ही साथ साथ चलते

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