- 1 -
"रोज़ एक ही ख्वाब जागती आँखों से देखता हूँ." अर्णव ने अंजलि की उंगलिया अपनी उंगलिओं में बांधते हुए कहा.
"क्या देखते हो?" अंजलि ने भी अपनी उंगलिया अर्णव की उंगलिओं में कसीं .
"गर्मीओं की एक शाम, बादलों में छिपा शाम का पीला सूरज, आँखों भर की दूरी पर एक खंडहर, तेज़ चलती हवा में उड़ते हुए दोनों के कपड़े और यूँ ही उंगलिया बांधे देर तक चलते रहने की ज़िद........ क्या यह ख्वाब पूरा होगा?" अर्णव ने सवालिया नज़रों से अंजलि को देखा.
"ख्वाब के साथ पूरा होने की शर्त नहीं जोड़ते....बुद्धू." अंजलि ने अर्णव के काँधे पर सर टिकाते हुए कहा.
"अधूरा रह जाने या टूट जाने की भी तो नहीं जोड़ते." अर्णव ने अंजलि की आँखों में झाँका.
अंजलि आँखें फेर कर दूसरी तरफ देखने लगी. अर्णव ने अंजलि के चेहरे को पकड़ कर अपनी तरफ घुमाया और अपनी सवालिया निगाहें अंजलि की आँखों में गड़ा दीं. अंजलि ने मुस्कुराते हुए हाँ कहाँ और फिर अपने को अर्णव के सीने में छुपा दिया.
- २ -
"सो जाओ , बहुत रात हो गयी अब तो." अंजलि ने अर्णव के बालों से खेलते हुए कहा
"नहीं, अभी नींद नहीं आई."
"तो क्या करोगे?"
"तारे देखूंगा"
"रात भर?"
"जी, यह सप्त ऋषि देखा तुमने? कितने सालों से ऐसे ही, हर बार यहीं इसी मौसम में इन्हीं पड़ोसियों की छत पर दिखाई देता है. किसी बात का न कोई रंज न कोई ख़ुशी , वक़्त के थपेड़ों से बेखबर वही सात अहले महफ़िल कई सदियों से यूँ ही एक ही जगह रुके,जैसे कोई अतीत नहीं इनका, न ही कोई मुस्तकबिल सिर्फ वर्तमान और वर्तमान के सिवा कुछ नहीं." अर्नव शून्य में से कहीं दूर से बोला.
अंजलि हैरत से अर्णव के चेहरे को देखने लगी. उसे अर्णव की आँखों में वो ठहराव नज़र आ रहा था जिसे वो मुद्दत से देखना चाहती थी. लेकिन उस ठहराव के पसे मंज़र एक उदासी थी....... एक गहरी बे इरादा उदासी........वो उदासी जो किसी के भीड़ में खो जाने ने डर से हर वक़्त आँखों में तारी रहती है.... वो उदासी जो किसी को उदास देखने से पहले ज़हन ओ दिल पर हावी हो जाती है......
"बहुत फलसफे झाड़ने लगे हो तुम" अंजलि ने शरारती लहजे में अर्णव की आँखें बंद की और अपना सर उसकी छाती पर टिका दिया. आसमान में उमड़ते काले बादलों ने सप्तरिशी पर पर्दा डाल दिया और वर्तमान फिर नेपथ्य में वक़्त के थपेड़ों से लड़ने लगा.
- ३ -
"अब कल से मिलना और बातें कम". अंजलि ने अर्णव का हाथ पकड़ते हुए कहा.
"क्यूँ"
"अरे भई, नयी नयी नौकरी है, काम ज्यादा है तो वक़्त का तकाज़ा है" अंजलि ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया.
"थोड़ी देर ही रहेगा" अंजलि मुस्कुराते हुए उठ के जाने की तेयारी करने लगी.
अर्णव ने हाथ पकड़ कर अंजलि की उंगलिया बाँध लीं और उस लम्स की हरारत ने अंजलि के खुद न जाने की कसक को बेपर्दा कर दिया .
वक़्त का पहिया अपनी ही गति से चलता वृत पूरे कर रहा था. एक निगाह और एक आवाज़ भर के फासलों में कारोबारी मस्रुफ़िआत ने एक अल्पविराम लगा दिया. एक लम्बा अल्पविराम............. पड़ोसियों की छत पे निकलता सप्त ऋषि बादलों ले पीछे वर्तमान को रोकने की कोशिश में लगा रहा........
-4 -
सुबह घर से निकलते ही अंजलि ने अर्णव को दरवाज़े पर पाया.
"इतनी सुबह सुबह" अंजलि ने मुस्कुरा कर कहा
"आज यूँ ही बेइरादा घूमने का इरादा है"
"अरे तुम तो खुद ही मालिक हो. हमारी तो नौकरी है सो बेइरादा नहीं घूम सकते." अंजलि ने कहा
"आज छुट्टी ले लो"
"नहीं मिलेगी"
"कोशिश तो करो"
आखिर कोशिशें ही तो कामयाब होती हैं. सप्त ऋषि फिर से बादलों के बाहर आने की कोशिश करने लगा.
"मैंने ख्वाब में तुमेह अक्सर आसमानी रंग के सूट और आसमानी रंग की चूड़ियों में देखा है" बहुत सुंदर लगती हो" अर्णव ने अंजलि से कहा
"तुम ख्वाब बहुत देखते हो" अंजलि मुस्कुरा कर बोली
" खवाबों में ही जीता हूँ और उनके पूरा होने की शर्त भी लगा देता हूँ"
"ख्वाब के साथ पूरा होने की.................." अर्णव की उंगलिया होंठो पर महसूस होते ही बाकी के लफ्ज़ अंजलि की साँसों में ही घुट गए .
हकीकत और ख्वाब के टकराव में अक्सर ख्वाब ही चकनाचूर होते हैं लेकिन इसके बर अक्स आज अर्णव की जिद के आगे हकीक़त हार गयी....ख्वाब रुनुमा हो उठा. आसमानी रंग ने अंजलि के रुखसार पर वो गुलाबी आभा बिखेर दी थी जिस का अर्णव एक मुद्दत से मुन्तजिर था.
"अर्णव जल्दी चलो..........हवा तेज़ है और बारिश भी आएगी" अंजलि ने उड़ते हुए आसमानी दुपट्टे को सँभालते हुए कहा
सारा आलम तारिक हो रहा था.
पर अर्णव चुन्धियाई आँखों से किसी तरफ देख रहा था . अंजलि ने अर्णव की तरफ देखा तो अर्णव के चेहरे पे एक पहचानी मुस्कान थी... दोनों के कपडे हवा में उड़ रहे थे...........आँखों भर की दूरी पर एक खंडहर आसमान में बचे बादलों से चमकती बिजली में रह रह कर चमक उठता.... और ...................
बादलों के पीछे गुरूब होता पीला सूरज और आसमान में उगते सप्त ऋषि एक ठहरे हुए वर्तमान को देख रहे थे ...............
"अब कल से मिलना और बातें कम". अंजलि ने अर्णव का हाथ पकड़ते हुए कहा.
"क्यूँ"
"अरे भई, नयी नयी नौकरी है, काम ज्यादा है तो वक़्त का तकाज़ा है" अंजलि ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया.
"वक़्त का तकाज़ा थोड़ी देर ही रहे तो अच्छा." अर्णव ने एक प्यार भरी निगाह से अंजलि की आँखों में देखा.
"थोड़ी देर ही रहेगा" अंजलि मुस्कुराते हुए उठ के जाने की तेयारी करने लगी.
अर्णव ने हाथ पकड़ कर अंजलि की उंगलिया बाँध लीं और उस लम्स की हरारत ने अंजलि के खुद न जाने की कसक को बेपर्दा कर दिया .
वक़्त का पहिया अपनी ही गति से चलता वृत पूरे कर रहा था. एक निगाह और एक आवाज़ भर के फासलों में कारोबारी मस्रुफ़िआत ने एक अल्पविराम लगा दिया. एक लम्बा अल्पविराम............. पड़ोसियों की छत पे निकलता सप्त ऋषि बादलों ले पीछे वर्तमान को रोकने की कोशिश में लगा रहा........
-4 -
सुबह घर से निकलते ही अंजलि ने अर्णव को दरवाज़े पर पाया.
"इतनी सुबह सुबह" अंजलि ने मुस्कुरा कर कहा
"आज यूँ ही बेइरादा घूमने का इरादा है"
"अरे तुम तो खुद ही मालिक हो. हमारी तो नौकरी है सो बेइरादा नहीं घूम सकते." अंजलि ने कहा
"आज छुट्टी ले लो"
"नहीं मिलेगी"
"कोशिश तो करो"
आखिर कोशिशें ही तो कामयाब होती हैं. सप्त ऋषि फिर से बादलों के बाहर आने की कोशिश करने लगा.
"मैंने ख्वाब में तुमेह अक्सर आसमानी रंग के सूट और आसमानी रंग की चूड़ियों में देखा है" बहुत सुंदर लगती हो" अर्णव ने अंजलि से कहा
"तुम ख्वाब बहुत देखते हो" अंजलि मुस्कुरा कर बोली
" खवाबों में ही जीता हूँ और उनके पूरा होने की शर्त भी लगा देता हूँ"
"ख्वाब के साथ पूरा होने की.................." अर्णव की उंगलिया होंठो पर महसूस होते ही बाकी के लफ्ज़ अंजलि की साँसों में ही घुट गए .
हकीकत और ख्वाब के टकराव में अक्सर ख्वाब ही चकनाचूर होते हैं लेकिन इसके बर अक्स आज अर्णव की जिद के आगे हकीक़त हार गयी....ख्वाब रुनुमा हो उठा. आसमानी रंग ने अंजलि के रुखसार पर वो गुलाबी आभा बिखेर दी थी जिस का अर्णव एक मुद्दत से मुन्तजिर था.
"अर्णव जल्दी चलो..........हवा तेज़ है और बारिश भी आएगी" अंजलि ने उड़ते हुए आसमानी दुपट्टे को सँभालते हुए कहा
सारा आलम तारिक हो रहा था.
"यहाँ आजाओ इस छत के नीचे " अंजलि ने अर्णव को खींचा
पर अर्णव चुन्धियाई आँखों से किसी तरफ देख रहा था . अंजलि ने अर्णव की तरफ देखा तो अर्णव के चेहरे पे एक पहचानी मुस्कान थी... दोनों के कपडे हवा में उड़ रहे थे...........आँखों भर की दूरी पर एक खंडहर आसमान में बचे बादलों से चमकती बिजली में रह रह कर चमक उठता.... और ...................
बादलों के पीछे गुरूब होता पीला सूरज और आसमान में उगते सप्त ऋषि एक ठहरे हुए वर्तमान को देख रहे थे ...............
अर्णव और अंजली
ReplyDeleteकिसी किताब के रूमानी पन्नों से
मानो, अभी उठ कर आये हों ....
फुर्सत के ऐसे बेहतरीन लम्हें ,,,
लेकिन अछा लगा पढ़ कर
"खाब के साथ पूरा होने की शर्त नहीं जोड़ते..."
इसके बाद
"सुबह" घर से निकलते ही,,, इतनी "सुबह सुबह" ,,,
और इसी के साथ
"सप्त-ऋषि" का ठहरे हुए वर्तमान को देखना
वाक़ई अर्णव के ख्वाब ही का जादू लगता है
कहानी के पात्र , पढने वालों को
अपने साथ साथ ही लिए जा रहे हैं ,,,
आसमानी रंगों से रु ब रु करवाते हुए......... !!
बहुत रूमानी सी कहानी ....यह ठहराव पसंद आया
ReplyDeletewah..ji boht vadia....boht sohna mahual rachia tusin....
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत कहानी है |
ReplyDeleteउर्दू लबो - लहजा पसंद आया |
कई उर्दू कहानीकार याद आये |
रूमानियत, कोमल और काव्यात्मक भाषा और ठहरा सा दिल को छू लेने वाला माहौल - बहुत खूबसूरत रचना बन पायी है |
बस ऐसे ही लगे रहो, छोटे वीर !
सुखदेव
Bahut khoobsurat ehsas,kamaal ke lafzon ke motioon ka chunav aur unhe kareene se pirone ka saleeka...yeh sab chhezen us parwardigar ne karam ke roop mein tumhe ata ki hain.....plz keep it up....God bless you.
ReplyDeleteAnu
Best Wishes.
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