Sunday, April 8, 2012

'हामिला'

सुबह दम ही हार के बैठ जाता है

ज़र्द कमज़ोर होंठो में

बुदबुदाता रहता है

न जानेक्या क्या कुछ

पकड़ा दूं तो गिरा देता है

कांपते हाथों से 

दिन भर के चुगे हुए

लम्हे 

ज़रा भींच लूं 

और लगा लूं गले से

तस्सल्ली के लिए

तोऔर बढा जाता है दर्द मेरा 

वक़्त भी शायद 'हामिला' है इन  दिनों 

हामिला: प्रेग्नेंट , गर्भवती 

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