Thursday, September 30, 2010

'अरिहा'

गरमाने लगी है फिर से जलती हुई  छड़ियों की खुशबू,
बर्फीली सर्दियों और दीयों के दिन 
देने लगे हैं दस्तक,
चस्पां है अभी तक वो 
मासूम मुस्कराहट ज़हन में,
जब दिया था 'चाची' ने उसे  मेरे हाथों में,
परेशां सी थीं वो मेरी बाहों में,  देखती हर सु
 गूंजने लगी है अब उसकी मासूम हंसी फ़ज़ा में  ,
नापने लगे हैं छोटे से पैर घर को 
और हो जाती है मसरूफ हाथों की उंगलीओं में कभी,
जागें  हैं मेरे कई ख्वाब, उसकी आँख के साथ

वाल्कर पर पैर इठलाती 'अरिहा'
एक बरस की होगी इस साल 

Tuesday, September 14, 2010

एहसास

न लाया करो ऐसे ख़यालात  दिल में,
जो कर देते हैं  मुनकिर,
कभी तुमको मुझसे,
कभी तुमको खुद से,
और उस एहसास से 
जो दिन भर की मस्रुफ़िअत  से 
चुरा कर चंद लम्हे बन जाता है
बाइस ऐ ज़िन्दगी
वो एहसास  दौड़ता है जो
एक सा दोनों की रगों में
और सुन लेता है दिल धडकने की सदा भी
हर बार.........
क्यूँ उलझ जाती हों बारहा 
नाम ढूँढने में रिश्तों के
और परखने लगती हो
एक पाकीज़ा एहसास की शिद्दत 




कम उड़ाया करो 
अपने ज़हन के परिंदों को
दूर कर देते हैं तुमेह मुझसे
जब जब परवाज़ मिलती है इन्हें 

Thursday, September 2, 2010

उसको उदास देख कर .....

कोई तारा टिमटिमा नहीं रहा, चाँद भी आता है तो ज़र्द सा चेहरा लिए,
न बाद ऐ सबा में वो रफ़्तार है,
न बादलों से उतरता कोई आबशार है,
ज़र्द सा इक मंज़र है चारों तरफ फैला हुआ,
गर्द ही गर्द है फ़ज़ा में  बिखरी हुई,
बहुत दिनों से नहीं देखी  कोई सुबह निखरी हुई,
ग़म और ख़ुशी किसी के बस में नहीं होती,
हरेक बात इन्सान की दस्तरस में नहीं होती,
तुम उदास न हुआ करो 
मेरी खातिर
रुक जाता है 
कारोबार कायनात का

इक तुम्हारे उदास होने से