चस्पां है अभी तक वो
मासूम मुस्कराहट ज़हन में,
मासूम मुस्कराहट ज़हन में,
जब दिया था 'चाची' ने उसे मेरे हाथों में,
परेशां सी थीं वो मेरी बाहों में, देखती हर सु
गूंजने लगी है अब उसकी मासूम हंसी फ़ज़ा में ,
नापने लगे हैं छोटे से पैर घर को
और हो जाती है मसरूफ हाथों की उंगलीओं में कभी,
जागें हैं मेरे कई ख्वाब, उसकी आँख के साथ
वाल्कर पर पैर इठलाती 'अरिहा'
एक बरस की होगी इस साल