Tuesday, July 6, 2010

क्या विश्व को भारत की देन जीरो हैं?

रोज़ रात को सोते वक़्त संगीत सुनने की आदत है. कल रात को भी कुछ ऐसा ही था. गीतों के चलते चलते अचानक एक डायलोग कान में पड़ा "India's contribution is zero zero and zero". इस के बाद गीत शुरू हुआ ' जब जीरो दिया मेरे भारत ने.................". मन तब से अशांत है क्यूंकि इस गीत में भारत और भारतीयता की जो प्रशंसा की गयी है उस से मन गोरवान्वित तो होता ही है पर आज के हालात देख कर रुदन भी करता है. मेरे भारत देश महान के कुछ तथ्यों की तरफ मैं अपने भाइयों का ध्यान ले जाना चाहता हूँ .........
१. भारत ने संख्या प्रणाली का आविष्कार किया. शून्य आर्यभट्ट द्वारा आविष्कार किया गया था. स्थान मूल्य प्रणाली, दशमलव प्रणाली भारत में 100 ई.पू. में विकसित हुई . आर्यभट्ट ने  499 ई. में  पृथ्वी की गोलाकार आकृति, आकार, व्यास, और पृथ्वी की घूर्णन गति  का सही आकलन किया.
२. विश्व का पहला विश्वविद्यालय तक्षशिला में 700 ईसा पूर्व में स्थापित किया गया था. विश्व भर के छात्रो ने  60 से अधिक विषयों का अध्ययन किया. नालंदा विश्वविद्यालय ४थी  शताब्दी में बनाया गया जो की शिक्षा के क्षेत्र में प्राचीन भारत की महानतम उपलब्धियों में से एक था. संस्कृत सभी उच्च भाषाओं की जननी माना जाता है. संस्कृत सबसे सटीक है, और कंप्यूटर सॉफ्टवेयर के लिए इसलिए उपयुक्त भाषा - फोर्ब्स पत्रिका में एक रिपोर्ट, जुलाई 1987.
३. भास्कर आचार्य (२) ने अपनी किताब "सिद्धांत शिरोमणि' में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत सर आइजैक न्यूटन से ४०० वर्ष पहले दे दिया था. भास्कर आचार्य (२) ने अपनी किताब "सिद्धांत शिरोमणि' में यह भी बताया के पृथ्वी सूर्य का एक  चक्कर ३६५ दिनों में पूरा करती है.
४. नेविगेशन की कला में सिंध नदी में 6000 साल पहले पैदा हुई थी.शब्द नेवीगेशन' शब्द संस्कृत NAVGATIH से व्युत्पन्न है.
५. सकारात्मक और नकारात्मक संख्या और उनकी गणना  को ब्रह्मगुप्त द्वारा पहले अपनी पुस्तक ब्रह्मगुप्त  सिद्धांत में समझाया गया.
६. सूर्य सिद्धांत, प्राचीन भारत के खगोल विज्ञान पर एक पाठ्यपुस्तक, 1000 ई.पू. में संकलित, के अनुसार  पृथ्वी का व्यास 7840 मील जो की  7,926.7 मील की आधुनिक मापन की तुलना में सन्निकट है . पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी 253.000 मील बताई  गयी जो  252710 मील की आधुनिक मापन की तुलना में सन्निकट है.
७. "pi का मूल्य  पहली बार  बौधयाना  द्वारा की गणना है, और उन्होंने ने उस अवधारणा को विकसित किया जो  बाद में  Pythagorean प्रमेय के रूप में जाना गया . वह यूरोपीय गणितज्ञों के पहले 6 वीं शताब्दी में इसअवधारणा की खोज की. इस को '1999 में मान्य' ब्रिटिश विद्वानों द्वारा किया गया.
८. जब कई संस्कृतियों के अनुयायी  5000 साल पहले  घुमंतू वनवासी थे, भारतीयओं ने  सिंधु घाटी की सभ्यता में हड़प्पा संस्कृति की स्थापना की
९. महर्षि सुश्रुत सर्जरी के पिता है. 2600 साल पहले उन्होंने अपने समय के स्वास्थ्य वैज्ञानिकों के साथ प्रसव, मोतियाबिंद, कृत्रिम अंगों को लगाना , अंग भंग होने,मूत्राशय के  पत्थरों और प्लास्टिक सर्जरी जैसी कई तरह  की जटिल शल्य चिकित्सा के सिद्धांत प्रतिपादित किये . असंवेदनता का उपयोग अच्छी तरह से प्राचीन भारत में जाना जाता था. 125 सर्जिकल उपकरणों का  इस्तेमाल किया गया. शरीर रचना विज्ञान, शरीर विज्ञान, aetiology, भ्रूण विज्ञान, पाचन, चयापचय, आनुवांशिकी और प्रतिरक्षा की विस्तृत जानकारी भी कई ग्रंथों में पायी  जाती  है.
१०. दक्षिण भारत के लोग  आधुनिक मार्शल कला के मूल के संरक्षक, योग से प्रभावित और युद्ध के प्राचीन भारतीय विज्ञान (धनुर -वेद) और चिकित्सा (आयुर्वेदिक-) वेद से जुड़े हैं. कुंग फू का मूल एक बोधिधर्म नाम के बोद्ध भिक्षु के द्वारा दिया गया , जो500 ई  के आसपास भारत से चीन गए. 
११. गोविन्दस्वामिन ने  न्यूटन से 1800 सालपहले  न्यूटन गॉस क्षेपकः सूत्र की खोज की.
१२. वतेस्वराचार्य  ने  न्यूटन से1000 साल पहले   न्यूटन गॉस पिछड़ा क्षेपकः सूत्र की खोज की.
१३.चरक संहिता (3rd to 2nd centuryBC ) आंतरिक दवा पर एक आयुर्वेदिक पाठ है. यह आयुर्वेद के तीन प्राचीन ग्रंथों में  सबसे पुराना माना जाता है.
१४. सिंचाई तकनीक ४५०० BC में सिन्धु  घाटी की सभ्यता में विकसित हुई.
१५. वेदांग ज्योतिष, जो १२०० BC में लिखा गया , में ग्रहण, लीप वर्ष, खगोलीय रशिओं, चन्द्र/सूर्य ग्रहण का विस्तार से वर्णन किया गया. पांचवी शताब्दी में लिखित पञ्च सिद्धान्तिका में ग्रहण को रेखा चित्रों से दर्शाया गया है जो की पश्चिमी विद्वानों द्वारा केवल एक हज़ार साल पहले किया गया.
१६.  कश्यप  (६ BC )   ने  पहले प्रतिपादित किया गया था कि परमाणु  (Atom) पदार्थ की एक अक्षय कण है . सामग्री के अनुसार ब्रह्मांड  कण  से बना है. जब पदार्थ  विभाजित होता है तब हम एक ऐसी स्थिति में पहुँच जाते हैं जहाँ विभाजन संभव नहीं है. और वह स्थिति परमाणु की होती है. 
१७.  आधुनिक भवन निर्माण पुरातन भारतीय वास्तु शास्त्र से प्रेरित है.
१८. संगीत के सातों स्वर वैदिक काल में पूर्ण रूप से मान्य किये गए. वेद, उपनिषद, श्रीमद भागवत, पुराणों और महाकाव्यों में स्वर संगीत के लिए कई संदर्भ हैं. कालिदास द्वारा रचित  विक्रमोर्यसिया  के चौथे अधिनियम में  द्विपदिका , जम्भालिका ,  खान्दधरा , कार्कार्ज , खंडाका , आदि जैसे विभिन्न अक्सिप्तिका  संगीत रचनाओं इस्तेमाल किया गया है 

यह  तथ्य वो तथ्य हैं जिन्हें संसार किसी न किसी रूप में मान्यता देता है. परन्तु हमारे वेद और धर्मग्रन्थ ऐसे ज्ञान से भरे पड़े हैं की हम आज तक उनका मूल्य ही न जान सके. बरसों की गुलामी ने हमारे धर्मग्रंथों को  मात्र महाकाव्य बना दिया. बात चाहे विमान की हों या अग्नि अस्त्र की हमारे धर्मग्रंथ ऐसी ही बातों से भरे पड़े हैं. चाहे पुष्पक विमान काल्पनिक हों, चाहे  राम  द्वारा  अग्नि बाण का संधान काल्पनिक हों पर एक बात तो हमें यह मानने पर विवश करती है की  पोराणिक हिन्दुओं की कल्पनाशीलता इतनी तो थी जिसे बाद के वैज्ञानिकों ने सच कर दिखाया.  . भारत ने गीता के रूप में संसार को जीवन सूत्र दिया. चाणक्य और विदुर द्वारा दिया गया नीतिशास्त्र किसी भी परिचय का मोहताज नहीं है. आधुनिक राजनीती विज्ञान चाणक्य और विदुर द्वारा प्रतिपादित किये गए सिद्धान्तों पर ही आधारित है. इसी प्रकार आधुनिक अर्थशास्त्र चाणक्य द्वारा लिखे गए अर्थशास्त्र पर आधारित और प्रेरित है. आधुनिक antibiotic दवाएं आयुर्वेद के रस शास्त्र से ही प्रेरित हैं. अंकगणितीय आपरेशनों जैसे  घटाव, गुणन, भिन्न, वर्ग, cubes और वर्गमूल आदि का  नारद विष्णु पुराण में उल्लेख मिलता है.
पोराणिक भारतियों की उपलब्धिओं को इक फेहरिस्त में शामिल करना लगभग असम्भव है.बरसों की गुलामी ने हमें हमारी प्राप्तियां सहेजने का मौका ही नहीं दिया. कई प्राप्तियों को घुसपैठियों  ने प्रदूषित कर दिया.कुछ दिन पहले एक समाचारपत्र में पढ़ा के अमेरिका १५० योग आसनों का पेटेंट करवानेजा रहा है. सभी को यह बात ज्ञात है के योग का सूत्र भारत के मह्रिषी पतंजलि के देन है. कभी अमेरिका हल्दी का पेटेंट करवाता है कभी तुलसी  का. हम तभी जागते हैं जब पानी के नाक के पास बहने लगता है. अब इसे राजनेताओं की असफलता कहें या हमारी , की हमारी विद्या जो की ५००० साल पुरानी है उसका श्रेय कोई ऐसी सभ्यता ले जाए जिसे पैदा हुए ५०० साल भी नहीं हुए, भारतियों के लिए शर्म की बात है. गलती हमारी है और इस गलती का फायदा दूसरे उठाते हैं. हम पश्चिमी संभ्यता के रंग में इतने रंगे है की हमें सावन के अंधे की तरह सब कुछ हरा दिखाई दे रहा है. हम योग को नहीं जान पाए लेकिन जब योग पश्चिम जा कर योगा हों कर वापिस आया तो हमें उसकी महानता का एहसास हुआ. हम रामायण को तब तक न समझ पाए जब तक की वो रामायणा हों कर पश्चिम से वापिस नहीं आया. स्वामी विवेकानंद की प्रतिभा तब तक छुपी रही जब तक अमेरिका वालों ने उन्हें स्वामी विवेकानंदा नहीं कहा. कुछ ऐसा ही हश्र हमने ओशो के साथ किया. ऐसा कई नाम इतिहास के गर्त में छुप गए जिन्हें पश्चिम जाने का मौका नहीं मिला. अगर कोई डॉक्टर भारत से अमेरिका जाता है तो उससे कई तरह के टेस्ट देने के लिए कहा जाता है जिसका साफ़ मतलब है की उन्हें हमारी योग्यता पर रत्ती भर भी विश्वास नहीं लेकिन क्या ऐसा ही व्यव्हार अमेरिका से भारत आने वाले डॉक्टर के साथ किया जाता है या किया जा सकता है? हमें आज भी सफ़ेद चमड़ी देख कर कमतरी का एहसास होता है. डॉ हरगोबिन्द खुराना को नोबेल पुरुस्कार तब मिला जब उन्होंने अमेरिका जा कर अपना शोध किया. अगर किसी भारतीय मूल के आदमी को नोबेल मिलता है तो हमारे यहाँ दिवाली मनाई जाती है. क्यूँ ? जब वो काम कर रहा था तब हमने उसे मान्यता नहीं दी, जब वो भारत की नागरिकता छोड़ कर किसी और देश का नागरिक बन गया और पुरस्कार जीत लिया तो हमें याद आता है की यह तो हमारा ही भाई था. ऐसी कई बातों की लम्बी फेहरिस्त है, जिसे अगर यहाँ लिखा जाए तो मुझे शायद देशद्रोही कहना शुरू कर दिया जायेगा. प्रेमचंद की रंगभूमि के मुताबिक यह संसार सदियों से ऐसे ही चल रहा है और चलता रहेगा. और अगर आज के बाद कोई आपको यह कहे की भारत की विश्व को देन जीरो है तो गर्व से इस बात  को कहेइएगा "की हाँ, विश्व को भारत की देन जीरो है, क्यूंकि जीरो के बिना गिनती पूरी नहीं होती".
जय हिंद 
और जाते जाते इकबाल के शब्दों में 
वतन की फ़िक्र कर नादां मुसीबत आने वाली है,
तुम्हारी बरबादियों के चर्चे हैं आसमानों में,
अब न समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिन्दुस्तां वालो,
तुम्हारी दास्ताँ भी न होगी दास्तानों में

5 comments:

  1. काफी अच्छा लिखा है पर वेद पुराण से सम्बंधित मेरे विचार मेल नहीं खाते .....पर पूरा देखा जाए तो काफी जानकारी देता है यह लेख ...शुक्रिया

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  2. u r write VARUN G. baahar ke dekave se hum apni pehchan bhool rhe hai. but phir bhi" east or west india is the best". app ne bahut aache se explain kiya heads off to u.

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  3. Hi Varun. Your analysis of the problem which is dogging India deserves praise. Your research and knowledge about India's gifts to the world in various fields is also praise worthy. But you have not suggested the remedy. No issue or project is complete till it gives/provides a solution to the problem. Your article is excellent if we overlook this aspect. Next time i believe the ILHAM will be containing the solution of the problem also. Best of luck.

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  4. Varun's article is a great collection of facts about our great and rich heritage.It not only shakes us from the care-free slumber of negligence but also inspires us to wake others,...as we feel immensely proud about India's great but unnoticed contributions towards the progress of mankind in every walk of life, may it be scientific, technical, astrological, medical, economical, physiological, spiritual, artistic,...and so on. Thank you, Varun for igniting our inner voice !

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  5. क्या विज्ञान का जन्म पश्चिम में हुआ??
    पाइथागोरस से पहले आर्यभट्ट, न्यूटन से पहले भास्कराचार्य!

    जानने के लिए पूरा लेख पढ़ें:--

    क्यों आत्मविस्मृत हुए हम??

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