Tuesday, June 29, 2010

समोसा सेवक बाबु राम

अगर इस समोसे वाली रेहड़ी का साइड पोज़ देखें तो लगता है के यह रेहड़ी किसी ऐसे भारत देश भगत की है , जिसे चीन से उतनी ही नफरत है, जितनी की एक आम 
आदमी को. अगर आप इस रेहड़ी का फ्रंट पोज़ देखें तो आप पायेंगे एक ऐसा शायर जो अपने टूटते हुए घरों से दुखी है और अपनी जन्मभूमि से दूर होने की टीस अभी तक उसके  ज़हन में कहीं बाकी है. यह हैं जनाब बाबु राम पहाड़िया . इसी नाम से अपने आप को बुलाना पसंद करते हैं. आपने समाजसेवक, गोसेवक और जल्सेवक तो सुने होंगे लेकिन इस आदमी को अगर फाजिल्का का समोसा सेवक कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. बाबु राम बताते हैं की कोई ३२ साल पहले वो कांगड़ा से अपना गाँव छोड़ कर सरहदी शहर फाजिल्का  काम ढूँढने आये थे. मंशा यह  थी के थोड़े  पैसे कमा कर वापिस गाँव जा कर ज़मीं खरीदेंगे और वहीँ के हों रहेंगे पर इस शहर ने इतना प्यार दिया की फिर यहाँ से जाने का विचार ही छोड़ दिया. दिन भर में अनगिनत समोसे बेचते हैं और अपने परिवार के लिए इज्ज़तदार रकम कमा लेते हैं. समोसे के रेट देखें तो लगता है के सरकार के मुह पर तमाचा मार रहे हों. पांच रुपए के तीन . यह भी रेट तब बढा जब महंगाई ने सुरसा जैसा मुह खोल कर हर किसी को निगलने की कोशिश की वरना रेट था एक रुपए का एक समोसा. रेहड़ी पर सेल्फ सर्विस का माहोल है. पैसे दीजिये और समोसा उठायिए पास में चटनी एक गागर है जो दिन में दो बार भरी जाती है उसमें से मन माफिक चटनी लीजिये. और प्यार ऐसा के सब  को अपना चाचा, मामा , अंकल, दादा सब यहीं मिल जातें हैं. पैसे खुले नहीं तो कोई समस्या नहीं अगली बार दे जाईएगा. रेट के बाबत पूछने पर बताते हैं की इस महंगाई ने सब का जीना मुश्किल कर रखा है. इनके ग्राहकों में सब से ज्यादा गाँव से शहर आने वाले दिहाड़ीदार मजदूर होते हैं जो गिने चूने पैसे घर ले कर जाते हैं. घर वापिसी पर जब पांच रुपयों के तीन समोसे मिलते हैं , तो मन खुश हों जाता है और जब उनके चेहरों की ख़ुशी देखते हैं तो कहते हैं के वो ख़ुशी ज्यादा पैसों के कमाने से कभी मिल ही नहीं सकती. फाजिल्का के हनुमान मंदिर के पास  १० साल से रेहड़ी लगा रहे हैं और पास की पोश कालोनी में भी उतने ही ग्राहक हैं जितने मजदूर लोग. सालासर के बाला जी के अनन्य भक्त हैं. किसी का दिल तो दुखाना कभी सीखा नहीं. कांगड़ा का ज़िक्र आये तो मन भर आता है और फिर कोई पहाड़ी लोक गीत गुनगुनाने लगते हैं. पर अगर आप इनकी पंजाबी सुन लें तो आप यह अंदाज़ा नहीं लगा सकते के यह जनाब पंजाबी नहीं हैं. बचपन में पिता जी से एक बात सुनी थी की पहाड़ियों जैसे प्यार से खाना या तो माँ खिलाती है या फिर पहाड़िया. इसी कहावत को चरितार्थ करते हैं बाबू राम. आप अगर किसी का घर पूछने के लिए भी रुके तो समोसा खाए बगैर आप आगे जा नहीं सकते.अगर त्यौहार के दिनहों तो जनाब की शरीक ऐ हयात भी इसी काम  में शरीक होती हैं. दोनों मियां बीवी सब के चेहरों पर खुशी देख कर खुश होते हैं. चीन से दुश्मनी  के बारे में बताते हैं के उन्हें चीन से तब से दुश्मनी है जब से ६२ की लड़ाई में चीन ने भारत की ज़मीं पर कब्ज़ा कर लिया था और सोचते हैं के अगर चीन इस बार  तीन गुना ताक़त से भी आये तो भारत का बाल भी बांका नहीं कर सकता. पहाड़िया नाम से अपनी पहचान बचाने की कोशिश और लोगों की सेवा करने के इस द्वन्द को शायद नमन भी नमन करे.

6 comments:

  1. BADA BHALA SA AUR SADA SA ARTICLE HAI, DIL KO CHHOO LENE WALA.
    HO SAKE TO THODA LAMBA KARO ISS KO. CHHURU HONE SE PALE HI KHATAM HO JATA HAI, CHHOTE SE SAMOSE YA CHAY KE CHHOTE CUP KI TARAH.

    ReplyDelete
  2. bahut bhadiya ,,,,,aise hi likhte raho

    ReplyDelete
  3. Wonderful writing Varun. Your writing has power to bring out inner emotional feeling through eyes.
    Keep it up!
    I must visit Babu Ram pahadi soon, eager to taste his smosaas...

    ReplyDelete
  4. ये आपकी अभिव्यक्ति ही है के पढ़ने के बाद बाबु राम जी को देखने और उनके समोसों का सेवन करने को मन लालायित हो उठता है, ...सेवक बाबु राम जी और आप बराबर बधाई के हक़दार हैं !

    ReplyDelete
  5. Dear Varun you express the inner feeling of simple but great man. Who is happy with others happiness. This type of person rarely found these days. He sells samosa for his livelihood but he is a great man. Thanks varun for writing the story of simple and high thinking person.

    ReplyDelete