Sunday, May 9, 2010

प्याऊ


भिखारियों के नाम नहीं होते. अगर होते हैं तो शायद उनको भी याद नहीं होते. हर कोई उन्हें अम्मा आगे चल, बाबा आगे चल कहते हैं और इस तरह सभी नर भिखारी बाबा और मादा भिखारी अम्मा हों जाती हैं. ऐसा ही एक भिखारी था वो भी. नाम पूछने पर हमेशा बाबा बताता. यह बाबा थोडा हट-के टाइप भिखारी था. स्टेशन के सामने वाला फूटपाथ उसकी मिलकियत समझा जाता था, जिसमे से उसने बहुत से भिखारिओं को जगह बेच दी थी और खूब पैसा कमाया था और अपने लिए उसने बहुत ही चुन के जगह रखी थी. इस जगह से वो हर दानदाता को सब से पहले नज़र आता था. एक दिन इक दानी सज्जन ने पुराना डनलप का पुराना गद्दा ला कर उसे दिया तो उसने उस गद्दे को बीच में से मोड़ कर उसकी पुष्ट तयार कर ली थी. अब बाबा सारा दिन बैठे रहते. कुछ पैसे फूटपाथ बेच कर आये हुए थे , कुछ जगह का किराया आता और खाने पीना की सब ज़रुरियात दानी सज्जन पूरा कर देते. अब बाबा का गद्दा शाम की चौपाल बन गया. बाबा ने थोड़ी बहुत साहूकारी भी शुरू कर दी थी. बाकि के किरायेदार या पडोसी सुबह धंधे पर जाने से पहले उससे कुछ खुल्ले पैसे ले कर जाते और शाम को सूद समेत वापिस कर देते. ले दे कर यह आदि सभ्यता के बैंक का ही एक रूप दिखता था. शाम को सब भिखारी उसे शहर की खबरें सुनाते और बाबा उन्हें स्टेशन की. पर इस चौपाल का एक नियम था के कोई बाबा के गद्दे पर नहीं बैठ सकता था क्यूँ की बाबा साहूकार  थे और बाकि उनकी प्रजा.
"अपने दिन बहुत मजे में कट रहे हैं भाई" बाबा ने कहा.  खाने पहनने को भगवान भेज देता है. बस एक पानी का मुद्दा है वो ज़रा चल कर सामने नलके से पीना पड़ता है.
"इतना तो चलना भी चाहिए बाबा"
"ओये तू डॉक्टर है. अबे अपने काम से काम रखा कर, वरना कल से सूद पर पैसा नहीं मिलेगा", हाँ, तो मै कह रहा था के गर्मियों की दिक्कत है. ठंडा पानी नहीं मिलता. भगवान करे कोई ठन्डे पानी का जुगाड़ हों जाये तो भगवान का दिया सब कुछ हों जायेगा."
यह नलका स्टेशन के बाहर है. फूटपाथ  के भिखारी, राहगीर, स्टेशन के मुलाजिम और यात्री सब की प्यास बुझाता था . बहुत भीड़ लगी रहती. गाडी छूटने के समय तो कई यात्री प्यासे ही सफ़र पर निकल पड़ते. पर इसमें नलके का कोई दोष नहीं था, वो तो बेचारा सुब्ह से शाम तक काम में लगा रहता अगर कोई उसके फल से अछूता  रह गया तो उसमें बेचारे नलके का क्या दोष.

"मैं यह कह रहा था सेक्टरी साब, के वो जो स्टेशन के बाहर वाला नलका है न उसकी बग़ल में एक कमरा बनवा के प्याऊ बनवा देते हैं , एक आदमी रख देते हैं और दो टब, दो जग और कुछ गिलास. गर्मियों में लोगो को कम से कम पानी तो ठंडा मिले , इन सरकारों के भरोसे रहे तो कुछ भी नहीं होगा" प्रधान जी ने अपना मशवरा दिया.
"ठीक है, विचार अच्छा है. इतवार की मीटिंग में यह मुद्दा पास करवा लेते हैं. बहुत पुण का काम है, और बाकि संस्था के पास पैसों की कोई कमी नहीं है" सेक्टरी ने प्रधान जी की बातों का उन्मोदन करते हुए कहा.
"तो मैं सब को फ़ोन कर देता हूँ, इतवार की मीटिंग के लिए."
"नहीं प्रधान जी, मीटिंग की काल तो सेक्टरी की तरफ से जानी चाहिए."
"जैसे आपकी इच्छा, हमें तो मीटिंग से मतलब है"|

इतवार की मीटिंग में बहुत गहमा गहमी थी. सब उत्साहित थे के संस्था एक पुण्य के काम में भागिदार बनने जा रही है. प्रधान जी और सेक्टरी के लम्बे लम्बे भाषणों और बाकी मेम्बरान की इस्स्लाह से सारा प्रस्ताव ध्वनीमत से पास कर दिया गया और अगले ही दिन प्याऊ बनाने की कार्रवाई शुरूकर दी गयी. रेलवे से नो ओब्जेक्शन लिया गया और नगरपालिका से एक गैर क़ानूनी पानी का कनेक्शन.
"हेल्लो , प्रधान जी, मैं गुप्ता ईंट वाला बोल रहा हूँ. सुना है प्याऊ बन रहा है. भाई ईंटें तो हम ही देंगे और आपको भी खुश करेंगे."
"अरे गुप्ता जी, यह को कहने की बात है. कहें तो प्याऊ का सारा ठेका आपको दे देते हैं पर ३० टका लेंगे"
"ठीक है पर काम हमारी मर्ज़ी से होगा, आप बिल पास करवा देना. आपका ३० टका पक्का."
"ठीक है जी, आप काम शुरू करें"

"अरे प्रधान जी, यह क्या ठीक आपने गुप्ता को दे दिया , मेरा साला भी तो यही काम करता है" सेक्टरी ने कहा
"कोई बात नहीं सेक्टरी साब, उसको बर्तनों का ठेका दे देंगे और वो आपके नौकर का बेटा है जो उसे वहां पानी पिलाने की नौकरी भी देंगे, आप नाराज़ मत हुआ कीजिये."
"ठीक है."

दो महीने बाद प्याऊ का उदघाटन बड़े जोर शोर से किया गया. सब से ज्यादा बाबा को खुशी हुई. शाम को चौपाल में सब उसे घेरे कहने लगे "बाबा, भगवान ने आपकी सुन ली अब तो गर्मियों में ठन्डे पानी का टंटा भी   खतम हों गया."
"अरे भगवान क्या करता यहाँ पे, अपन ने प्रधान ग को कहा. अपन को बहुत मानते हैं. यह गद्दा भी वो ही दे गए थे. हमने कहाः तो कहने लगे , बाबा यह भी कोई काम है इस गर्मियों में ही लो, और आज काम भी हों गया. तुम में से किसी को प्रधान जी से कोई काम हों तो मुझसे कहना. चुटकी में करवा दूंगा.
                          
                                                           -2-

"हेलो , सेक्टरी साब, ज़रा फ़ोन तो कीजये, परसों इतवार को मीटिंग बुलवा लें|"
"हाँ जी प्रधान जी कर देता हूँ. पर वो मेरे साले का बर्तनो का बिल तो पास करवा दें|
"वो भी हों जायेगा. हम आपका इतना ख्याल रखते हैं और आप एक छोटे से बिल के पीछे नाराज़ मत हुआ कीजिये"|
"चलिए, मैं फ़ोन कर देता हूँ|"
मीटिंग के दिन फिर गहमा गहमी का माहोल था. प्रधान जी कलफ किया जारी वाला कुरता पजामा  पहने स्टेज पर विराजमान थे. सब को चुप रहने का इशारा कर के उन्होंने कहा " आदरनीय सदस्यों, जैसा की आपको मालूम है, हमने जो स्टेशन के बाहर प्याऊ बनवाया था वो पूरी तरह से कामयाब रहा है. अब हमने सोचा है के उस प्याऊ में एक एल्क्ट्रोनिक वाटर कुलेर लगवा देते हैं. बिजली बोर्ड के अधिकारिओं से बात हों गयी है वो हमें एक कुण्डी कनेक्शन दे देंगे.|

थोडा खंखार कर प्रधान जी ने अपनी बात आगे बढाई " प्याऊ पर लगे दान पात्र में संस्था के पास काफी पैसे जमा हों गए हैं इससे हमें वाटर कुलेर लगाने में कोई समस्या नहीं आएगी."

"प्रधान जी , वाटर कूलर मेरी दूकान से ही जायेगा न." शर्मा जी बोले

"बिलकुल शर्मा जी, आपसे बाहर थोड़े ही हैं हम"|

"और बिजली का सामान मेरी दूकान से " एक गंजे से वर्मा जी ने बीच में अपनी बात घुसेडनी चाही.

"नहीं वर्मा जी, आपको सेवा का मौका अगली बार देंगे, यह सामान इस बार नगरपालिका के प्रधान जी के जीजा जी की दूकान से आएगा." प्रधान जी न माफ़ी मांगने वाले स्वर में कहा

"पर मेरे नौकर के बेटे का क्या होगा, जो प्याऊ पर नौकरी करता है" सेक्टरी बीच में बोला

"अरे भाई उसे मैंने सेठ जी के पास ड्राईवर लगवा दिया है"




कुछ दिन बाद उस प्याऊ में एक अदद वाटर कूलर ने यात्रियों, मुलाजिमो और भीखारियो को अपनी सेवाएं देनी शुरू कर दी. सब खुश थे. बाबा के भिखारी बाबा की पहुँच से प्रभावित हों कर उसे अपना सरदार मानने लग गए.

"अब ऐसा हैं के प्रधान जी मेरी राय के बिना तो यह ठन्डे पानी की मशीन लगवाने से रहे" बाबा ने भिखारिओं से कहा|
"तो क्या प्रधान जी ने तुमसे राय ली थी" एक वृद्ध भिखारी थोडा आगे हों कर बोला
"और नहीं तो क्या. मुझसे पूछने लगे के मशीन लगवा देता हूँ तू इन भिखारिओं से आठ आने एक बर्तन के ले लिया करना" बाबा ने पुष्ट से पीठ टिकाते हुए कहा | "मैंने कहा राम राम प्रधान जी, आगे भगवान को मुह दिखाना है, आठ आने तो बहुत ज्यादा हैं. १० पैसे ठीक रहेंगे. भगवान आप को सब कुछ दे पर इन गरीबो का कुछ सोचो तो मेरे कहने पर मान गए के चलो १० पैसे बर्तन के ले लेना"

"ठीक है हम कल से आपको १० पैसे बर्तन के देंगे" सभी भखारी एक साथ बोले|
"ठीक है अब तुम जाओ, मेरे पूजा करने का वक्त हों गया है" बाबा ने आँखें बंद करते हुए कहा|
                                                           -३-

"हेलो , सेक्टरी साब, ज़रा फ़ोन तो कीजये, परसों इतवार को मीटिंग बुलवा लें|"
"अरे प्रधान जी मीटिंग छोडिये, काम बोलिए| आप तो हर बार मलाई खुद खा जाते हैं और दूध दूसरों को पिला देते हैं हमें तो तलछट भी नहीं मिलती"|
."अरे भाई, काम तो यह है के स्टेशन के बाहर के प्याऊ पर भीड़ ज्यादा है . सोच रहा हूँ एक वाटर कूलर और लगवा दें तो कैसा रहे"|
"प्रधान जी बात उम्दा है. पर इस बार सब मेरा होगा. मेरे चाचा जी ने अमेरिका से पैसे भेजे है किसी सामजिक काम के लिए. उन से वाटर कूलर लगवा कर बिल आपसे पास करवाना है और बाकी हम आपस में देख लेंगे.
"ठीक है सेक्टरी साब. आप तो भगवान हैं जैसा आप कहें"|
"पर वो नलका बीच में आएगा"
"तो उखाड़ दो"
"ठीक है , मैं आज ही उखाड़ देता हूँ आदमी भेज कर. और किसी को इस बात का पता न चले की क्या हों रहा है"|

"अरे बाबा, वो नलका तो उखाड़ दिया उन्होंने" एक भिखारी बाबा को सूद देते हुए बोला
"हाँ, वो प्रधान जी आये थे तुम्हारे ठन्डे पानी के पैसे लेने. बोले एक मशीन और लगवा देता हूँ" बाबा ने रुपए गिनते हुए कहा." तू ऐसा कर वो नलका है न, उसे उठा ला इधेर, पाइप तो वो साथ ही ले गए.
"उसका क्या करोगे"
"अरे मेरा पुराना दोस्त है, उसे सिरहाने की तरह नीचे रखूँगा, बुरे दिनों का साथी है मेरा"
"ठीक है"

                                                           -४-

"अरे सेक्टरी साब, वो पुराने वाला वाटर कूलर नहीं चल रहा. अभी ६ महीने ही तो हुए हैं"
"अरे प्रधान जी, आपने ३० टका खाया था, आप देखो, अपना तो सही चल रहा है"
"यह क्या बात है मुह सम्भाल के बात करो"
"तो इसमें गलत क्या है"
"क्यूँ तुने भी तो खाया है दुसरे में"
"फिर क्या हुआ तुमसे ज्यादा तो नहीं है"

"चलो छोडो, और हाँ वो बिजली बोर्ड वाले आकर जुरमाना ठोक गए हैं. बोल रहे ते सरकार बदल गयी है ऊपर से आर्डर आया है हम कुछ नहीं कर सकते" प्रधान जी ने कहा
"प्रधान जी, पानी वाले केस में भी कुछ ऐसा ही है" सेक्टरी ने कहा
"तो फिर क्या करें , बिना पानी बिजली के तो वाटर कूलर चलने से रहा"|
"तो ठीक करवा के बिल डाल दो. बाकी देख लेंगे"|
                                                                 -५-

गाड़ियाँ अपने समय से प्यासे यात्रिओं को लेकर  रवाना  हो रहीं हैं. वाटर कूलर बंद हो चुके हैं. प्याऊ की दीवारें गिरती जा रही हैं. भिखारिओं ने बाबा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और अपना एक नया सरदार बना कर बाबा को प्याऊ की साथ वाली दिवार की तरफ भेज दिया है. बाबा सारा दिन टूटे हुए नलके से टेक लगा कर उदास बैठा हुआ भगवान को कोसता है. प्रधान जी और सेक्टरी ने अगली मीटिंग में शहर के गरीब इलाकों में पानी की कमी को दूर करने के लिए नए नलके लगवाने के प्रस्ताव को पास करवा लिया है और वर्मा जी इस सेवा का मौका पाकर कल एक पार्टी दे रहे हैं. आप सब सादर आमंत्रित हैं.


                                                          

7 comments:

  1. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  2. really appreciate the way u observe the minut things and pen them down.good effort

    ReplyDelete
  3. nice one... carry on writing.. i appreciate the way you describe the details and build the story..

    ReplyDelete
  4. Bahut Badiya, Varun JI...............
    Keep writing

    ReplyDelete
  5. कहानी अपने आप में मुकम्मिल है
    कथानक में वो अंश / कारक हैं
    जो आंदोलित किया करते हैं ....
    जुमलों के 'आने-जाने' में कहीं कहीं
    कहानीकार के खुद के होने का एहसास सताता है
    रचना-प्रक्रिया प्रभावशाली है ही ...
    मुबारकबाद कुबूल फरमाएं


    dkmuflis.blogspot.com

    ReplyDelete
  6. अच्छा प्रयास है वरुण,...लिखते रहिये !शुभाशीष !

    ReplyDelete
  7. आज सड़कों पर लिखे हैं सैंकड़ों नारे न देख

    घर अँधेरा देख तू आकाश के तारे न देख


    एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआ

    आज अपने बाजुओं को देख पतवारें न देख


    अब यक़ीनन ठोस है धरती हक़ीक़त की तरह

    यह हक़ीक़त देख, लेकिन ख़ौफ़ के मारे न देख


    वे सहारे भी नहीं अब जंग लड़नी है तुझे

    कट चुके जो हाथ ,उन हाथों में तलवारें न देख


    दिल को बहला ले इजाज़त है मगर इतना न उड़

    रोज़ सपने देख, लेकिन इस क़दर प्यारे न देख


    ये धुँधलका है नज़र का,तू महज़ मायूस है

    रोज़नों को देख,दीवारों में दीवारें न देख


    रख्ह,कितनी राख है चारों तरफ़ बिखरी हुई

    राख में चिंगारियाँ ही देख, अँगारे न देख.

    ... ye bahut kamaal ki ghazal hai.. kis ne likhi hai..??

    ReplyDelete