Tuesday, April 13, 2010

रेत

                                                                       -१-
 "ओ भैन ________________________" मैं चिल्लाया. "दीखता नहीं है तेरे को"
पीछे से किसी ने कान पकड़ा , घसीटा और सीधा बाथरूम के पुराने मैले रंग के दरवाज़े को खोल के अन्दर धकेल दिया. चिटकनी लगने की आवाज़ आई तो आवाज़ से पहचाना के ये तो ताया जी थे. यानी घंटा बैठेंगे और माँ पिताजी में किसी में इतनी हिम्मत नहीं होगी और मैं एक डेढ़ घंटे के लिए बंद. राजू चला गया तो मेरे पांच कंचे डूब जायेंगे. पानी, चाय की आवाज़ लगने लगी. अभी पंडित जी भी आयंगे गली में, गोलगप्पे वाले, वो भी खिलाये जायेंगे.औरमैं एक कैदी की तरह अन्दर पड़ा रहूँगा. कुछ तो करना पड़ेगा.


आवाज़ भर्रा कर बोला: " ताया जी मैंने कुछ नहीं किया. वो तो राजू ने मेरा रेत का घर तोडा था तो मैं उससे लड़ रहा था. मैंने कुछ नहीं किया. आई ऍम सॉरी , मुझे बहार निकालो".


किसी ने न सुनी. सब बैठे रहे . बाहर  पंखे की आवाज़ आई तो अपने बदन पर भी पसीने का आभास हुआ तो दिल और बैठने लगा. अब तो गए हाय, गर्मी.
"सुलेखा की शादी में सब को बीस बीस हज़ार रुपए देने हैं............" यह ताया जी की आवाज़ थी.
"मैं कल ही बैंक से निकल दूंगा" पिता जी बोले.
बीस हजार बैंक से निकलेंगे. कल मैंने कंचो के लिए पैसे मांगे थे तो पिता जी ने कहा था के अभी तनख्वाह नहीं मिली. ताया जी बहुत गंदे हैं. मेरे कंचों के लिए पापा के पास पैसे नहीं और यह शादी के लिए बीस हजार ले जायेंगे. मैं बीस हजार के कंचों का हिसाब लगाने लगा. उँगलियों ले पोरे कम पड़ गए, और इतना बड़ा पहाडा तो अभी स्कूल में पढाया नहीं. शायद अन्दर वाला कमरा पूरा भर जायेगा. मैं कंचों के खजाने पर खुश होने लगा. तभी चिर परिचित बूटों की आवाज़ ने मेरे विचारों के तारतम्य को तोडा. ताया जी जा रहे हैं. उनके जाते ही माँ ने दरवाज़ा खोला, मैं भाग कर बाहार आया. राजू जा चूका था. मैं उसके घर गया , उसकी माँ ने कहाँ वो अपने बाप की रेहड़ी पर गया है. रात को आएगा. मुझे पता था, वो साला है ही चोर. हर बार मेरे कंचों को ठग कर ले जाता है. अगर आज ताया जी ने मुझे बंद न किया होता तो मैं उस भेन_______ से सरे कंचे जीत लेता.
मैं फिर से ताया जी कोसने लग जाता हूँ. इतना बड़ा नुक्सान सिर्फ उनकी वजह से हुआ है.


                                                                  -२-


"मुझे नोट बंधने वाली टाई ले के दो, मैं यह बच्चों  वाली रेडीमेड टाई नहीं पहनूंगा". मैंने घर में घुसते ही शोर मचाना शुरू किया.
"अभी नहीं, एक तारीख को जब तनख्वाह मिलेगी तब. उससे से पहले मत मांगना".
"क्यूँ २० रुपए की टाई के लिए अभी बीस दिन इंतज़ार करूँ. मेरे सब दोस्तों ने ले ली है और वो मेरा मजाक उड़ाते हैं. मैं फिर कल से स्कूल नहीं जाऊंगा. एक तारीख के बाद ही जाऊंगा."
एक झन्नाटेदार थप्पड़ मेरे नाज़ुक गालों पर पड़ा. आंसू ढलके और मैं बाहर वाले मंजे पर लेट गया. रोते रोते नींद आई और आँख खुली तो शायद ९ बज रहे थे. दूरदर्शन की चिरपरिचित ध्वनि जो समाचार बुलेटिन ख़तम होने बजती है बज रही थी..
माँ ने खाना रखा तो मैंने मूंह फेर लिया. माँ भी चली गयी. किसी ने खाने के लिए नहीं पूछा. मास्टर जी कह रहे थे, सप्तऋषि गर्मियों में साफ़ दिखाई देता है और मैं तारों में सप्तऋषि ढूँढने लग जाता हूँ. पेट कुलबुलाने लगा है. भूख लग रही है. शायद सप्तऋषि की तरफ ध्यान लगाने से भूख कम लगे. भूख को तो लग्न है , वो लग रही है. कैसे माँ बाप हैं, बच्चे को खाना नहीं दे रहे. एक बीस रुपए की टाई ही तो मांगी है कौन सा जहाज मांग लिया है. कल गौरव के पास ५०० रुपए की घडी थी. वो आमिर आदमी है, आढ़त का काम है उसके बाप का. भाई मेरे, पिछले जन्म में गौएँ दान की होंगी तभी अमीर घर में जनम मिला है. काश अपने भी ठाठ होते, पर यहाँ तो खाना ही नसीब नहीं हो रहा. घड़ियाँ क्या ख़ाक मिलेंगी. मैं फिर पेट पकड़ कर हिलता जुलता हूँ, खांसी करता हूँ. तभी माँ ने आकर सिरहाने खाना रख दिया और चली गयी. मैं मूंग की दाल (जो मुझे कभी अच्छी नहीं लगी) के साथ रोटी खा कर पानी पी पी कर माँ पिता जी को कोसता हूँ और सोने की कोशिश करने लगता हूँ.


                                                                        -३-
"छोड़ यार, वो प्रोफेस्सर बहुत बोर करता है. कल लगायेंगे उसकी क्लास". मैं सुमित की बाजु पकड़ कर घसीटते हुए बोलता हूँ.
"हाँ यार चल, बाहर चाय पीते हैं". उसने भी मेरे प्रस्ताव को हरी झंडी देते हुए कहा.
"दो चाय बना ओये".
"तुने कभी सिगरट पी है". सुमित एक लड़के को सिगरट पीते हुए देख कर बोला.
"हाँ एक बार. पांचवी में था, बुआ के घर जा के पी थी. चोरी की थी एक अट्ठनी." मैं बोला
"आज पियें" उसने कहा
"नहीं यार छोड़. आदत पड़ जाती है सुना है" मैंने इनकार में सर हिलाया.
"यार एक बार में थोड़ी आदत पड़ जाएगी"
"चल ले ले एक. आधी आधी पी कर देखते हैं"
सिगरट ले ली गयी है और हाई blood प्रेशेर के साथ उसे सुलगाने का उपक्रम शुरू किया जाने लगा. सुट्टा खिंचा और खांसते खांसते आँखें लाल.
"अरे , बुधुराम सुट्टा ऐसे थोड़े खींचते हैं. आरामस इ पहले धुआं मूंह में भरो, फिर सीईईई की आवाज़ के साथ उसे गले से उतारो, फिर देखो जन्नत का नज़ारा."
" ला दे यार."
मूंह में धुआं बहरा, सीईईई की आवाज़ के साथ गले से उतारा. फिर आया जन्नत का नज़ारा. चक्कर आये, मज़े वाले. चाय का स्वाद बदल गया. चाय वाले के साथ मजाक शुरू. "ऐसे ही भूले रहे यार इसे, ये तो वाकई जन्नत का नज़ारा हैं". मैं मदमस्त आँखों से बोला.
"चल यार आज फिल्म देखते हैं" सुमित ने कहा.
"वो लेक्चर" मुझ पर अभी भी नशा तारी था.
"एक दिन से कोई फरक नहीं पड़ता, वो सोढ़ी को देख साला कभी क्लास में नहीं आता. एक दिन हम भी मज़े लार लें"
सिनेमा के बाहर टिकेट ले रहे थे और बाल सुलभ चंचलता के साथ मजाक भी.
"आज कॉलेज नहीं गए , बेटा" पीछे से किसी ने पूछा.
मुड कर देखा तो होश गम. अंकल थे, पापा के साथ दफ्तर में हैं.
"वो प्रोफेस्सर साहब बीमार हैं, लेक्चर लगा नहीं इसलिए फिल्म देखने आ गए."
शाम को घर जाने में भी डर. अन्दर घुसते ही गालिओं के परमाणू अस्त्र चलने लगे. ऐसा लग रहा था के मैं जैसे फिल्म नहीं किसी का क़त्ल देख कर आ रहा हूँ.
खाना न मिलना था, न मिला. यह सब अंकल की बदमाशी है. उन्होंने ही घर में कहा होगा. उनको क्या लेना देना है मुझसे. अपने घर में मस्त रहे. खुद का बेटा आर्ट्स में है, उसको होशिआर बांयें. हम साइंस वालो से ऐसे ही दुश्मनी. कोई बात नहीं अंकल जी, कल को मेरा टाइम भी आएगा. दिमाग ने मुक़दर का सिकंदर फिल्म  वाला dialogue   मारा. आज से कभी रस्ते में मिल अगये तो नो नमस्ते नो सत श्री अकाल . आपजी पहले हमारी शिकयत लगाओ , इज्ज़त बाद में करवा लेना.
"चाय पीने चलें" सुमित बोला
"नहीं यार, कल अंकल घर शिकायत ले के पहुँच गए"
"चल; एक सिगरट पी के क्लास में आ जाते हैं"
"नहीं यार तू पी लेना , मैं तेरे साथ चलता हूँ."
"ठीक है"
"एक सिगरट ला ओये, और पानी भी " सुमित चिल्लाया
पानी के साथ एक कैप्सूल गटका और बोला"अच्छी चीज़ है यार, लेक्चर कैसे निकल जाता है पता नहीं चलता. तू भी खा ले एक "


" नहीं यार सिगरट तक ही ठीक है" मैंने इनकार किया
"तेरी मर्ज़ी"
"चल चलें" वो उठेते हुए बोला.
रास्ते में एक सज्जन मिले. उनको कार में वो भी बैठा और मैं भी. नहर के किनारे बैठ कर बिएर पीने का क्या मज़ा है आज पता चला. पर परमात्मा को मेरी ख़ुशी पहले कौन सा पचती थी जो आज पचेगी. वोही अंकल मिल गए, पर कोई बहाना नहीं मिला.
घर पे खाना भी नहीं मिला. एक हफ्ता घर में जंगी कैदी की तरह कटा. एक हफ्ता अंकल जी को कहाँ, कैसे, कब और किसके साथ पीटना है यह प्लानिंग की. फिर उसके बेटे को रंगे हाथ पकड़ने ने की. पर हम से कोई अच्छा काम हुआ है जो इस बार होगा. अंकल की तो___________________________________.


                                                                         -४-


"बधाई हो यार."
"शुक्रिया" मैंने नफीस लहजे में जवाब दिया.
"सब से पहले मैदान मर लिया, दोस्तों में से"
"बस यार ऐसे ही है".
शादी तय होगी तो भाई बधाई तो मिलेगी. नौकरी भी लग गयी है, अब एक कमाऊ बीवी भी आएगी तो ऐश हो जाएगी. तो राम राम करते शादी का दिन भी आया. शादी हुई. जैसे सब की होती है अपनी भी हुई. मधुमास भी मनाया, जैसे सब मनाते हैं. शराब भी पी, जैसे सब पीते हैं. अब को शिकायत नहीं लगेगी घर में. अब बड़े हो गए हैं. बीवी भी आ गयी है. अब तो समाजिक रूप से हम स्वीकार्य हो गए हैं.
"आप सिगरट पीते हो". पत्नी बोली
"हाँ"
"पहले नहीं बताया, यह गलत बात है. अब छोड़ दो"
"हाँ जल्दी ही छोड़ दूंगा"
रोटी के बाद तो पीनी पड़ेगी, काम नहीं चलता ऐसे. तो शिमला समझौता रात की एक सिगरट पर तय हो गया.
"आप तो रोज़ ही पी कर आने लगे"
"तो क्या हुआ, कौन सी ज्यादा पीता हूँ. दो पेग ही पीता हूँ"
"सेहत तो बिगाड़ते ही हैं. छोड़ दो"
"जल्दी छोड़ दूंगा"
तो इस बार लाहोर समझोता, महीने में एक बार पीने पर तय हो गया.,
पीना तो नहीं छूटा पर हाँ घर में बताना छूट गया. पर बकरे की मान आखिर कब तक खैर मनाएगी. एक दिन तो पकडे ही गए. "समझोते वाली तो कल पी थी.. फिर आज किस लिए  ."
"दोस्त मिल गए थे, धक्का कर दिया उन्होंने"
"यह मरजाने दोस्त, अपना तो घर खराब करते हैं, मेरे घरवाले को साथ में ऐसे मुफ्त में."
मैं मन में सोच रहा हूँ यार बिगड़ने तो में अकेला ही गया था यह भली मानस अब मेरे दोस्तों से शीत युद्ध शुरू कर देगी. बेचारे दोस्त. पर दोस्त तो होते ही कुर्बानी के लिए हैं. खाना नहीं बना है, और एक हफ्ता संग्राम जारी रहेगा. मैं पानी पी पी कर रात भर पत्नी को कोसता हूँ.


                                                                         -५-
"बधाई हो यार. बेटा हुआ है"
"शुक्रिया"
"बेटा पहले होना चाहिए . आदमी की सारी चिंता खत्म हो जाती है." एक बुढ़िया बोली
"हाँ, खानदान ताँ ही चल्लू " एक बुज़ुर्ग महिला ने बात को आगे बढ़ाते हुए बोला
"बिलकुल बाप पे गया है" एक स्वर और उभरा.
"हाँ, आदतें बाप पर न जाएं"
यह बात सिं कर मेरे भी कान खड़े हो जाते हैं. सब अपनी बात रख रहे हैं. मैं सोच रहा हूँ कब ये लोग जायें और मैं अपना कोटा निकालूँ. शराब पिए  बिना तो नींद नहीं आएगी.
"अब तो बैठने लगा है"
"दांत भी जल्दी निकलेगेया."
चलो अच्छा है. बच्चे ठीक हों तो माँ बाप परेशां नहीं होते."
जितने मुह उतनी बातें.
                                                                          -६-
बेटा बड़ा हों गया है. गली के कुछ लड़कों के साथ खेलता है. मैं उसे उंच नीच समझता हूँ.
"ओ भैन ________________________" बेटा  चिल्लाया. "दीखता नहीं है तेरे को"


मैं बेटे का कान पकड़ कर उसी मैले दरवाज़े को खोल कर बाथरूम में बंद कर देता हूँ.

2 comments:

  1. An appreciable short-story.Places Varun Gagneja among the promising fiction-writers !

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  2. Badiya hai Ji, I appreciate it. Keep it on.

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