Sunday, November 22, 2009

क्या देशभक्ति का नाम सिर्फ़ पाकिस्तान को गाली देना है ?


कई दिनों से देख रहा हूँ की हमारी राजनीती, हमारी नफरत और हमारी असफलताएं सब पाकिस्तान और चीन केंद्रित होती जा रहीं हैं। क्या हमारे देश में देशभक्ति की परिभाषा केवल पाकिस्तान को गाली देना ही है? जाली नोट बाज़ार में आयें तो यह पाकिस्तान का किया धरा है, कहीं आतंकवादिओं ने हमला किया तो भी यह पाकिस्तानी साजिश है और अगर कोई देश पाकिस्तान को आर्थिक सहायता दे तो भी हमारी अस्मिता पर खतरा। २६/११ के हमले को आज एक साल होने को आया और हम कसाब को क़ानूनी सहायता दे रहे हैं। जिस आदमी को करोड़ों लोगों ने टीवी पर देखा क्या उसे भी बेगुनाह साबित होने तक हमने इंतज़ार करना है। अमेरिका में ९/११ के बाद कोई आतंकवादी हुम्ला नही हुआ लेकिन हमारे देश में एक बाद एक अब तक जाने कितने ही हमले हो गए हैं। क्या कारण है? शायद जानते हम सब हैं लेकिन फिर भी मानना नहीं चाहते। क्या २६/११ के आतंकवादिओं का बिना लोकल आदमी की सहायता के बम्बई में आना मुमकिन था? कैसे वोह १० आदमी कास्ट गार्ड्स को चकमा दे कर बम्बई में आ गए। क्यूँ एन एस जी के आने से पहले उन आतंकवादिओं को २४ घंटे तबाही मचाने को मिल गए। मेरा मकसद न ही उन ज़ख्मों को हरा करना हैं और न ही मैं सरकार पर कोई लांछन लगा रहा हूँ। क्या हम सब अपने आप में इतने इमानदार हैं की हम पाकिस्तान को हमारे हर नुक्सान के लिए ज़िम्मेदार ठहरा सकें। हम अभी भी भाषाई, अल्पसंख्यक, बहुसंख्यक और भोगोलिक मुद्दों में उलझें हैं। सरकार हो या कोई भी स्वयंसेवी संगठन हमें अपने पड़ोसी मुल्कों के प्रति हमारा राष्ट्रीय धर्म याद करवाते हैं। क्या राष्ट्रीय धरम केवल घोषित दुश्मनों के प्रति ही होता है। क्या देश में बढ़ रही अराजकता को खत्म करना राष्ट्रीयधर्म की परिभाषा में नही आता? क्या राज ठाकरे जैसे अलगाव वादियों को चुनाव में भारी बहुमत देना राष्ट्रीय धर्म है या क्षेत्रीय दलों द्वारा लोगों को ज़बान, मज़हब और प्रान्त के नाम पर बांटना राष्ट्रीय धर्म की परिभाषा में आता है? जब दफ्तरों में बाबूगिरी बढती है, जब मंत्री या उसके सहयोगी घूस खाते हैं तब उनको राष्ट्रीय धर्म कौन याद दिलाएगा? क्या राष्ट्रीय धर्म सिर्फ़ नागरिकों का दायित्व है?क्या हमारा राष्ट्रीय धर्म उन माफियों के ख़िलाफ़ बोलने का नही जो या तो बस ट्रांसपोर्ट पर क़ब्ज़ा कर के सरकारी खजाने को क्षति पहुंचाते हैं या रेत की खदानों और केबल टीवी पर क़ब्ज़ा कर के लोगो के रोज़गार का हक छीनते हैं? राष्ट्रीय धर्म तब कहाँ जाता है जब क्षेत्रीय पार्टिओं के कार्यकर्ताओं के नाम पर गुंडों की फ़ौज खड़ी की जाती है या लोगो को सभी टैक्स भरने के बाद भी सड़कों पर टोल टैक्स दे कर गुजरने पर मजबूर होना पड़ता हैं। हम हर गैरकानूनी बातों को यह सोच कर सह जाते हैं की अभियुक्त की सरकार में पहुँच है। सिर्फ़ सरकार ही नही नागरिक भी दोषी हैं। हर शाख पे उल्लू बैठा है , अंजाम ऐ गुलिस्तान क्या होगा। देश में नक्सलवाद , नशाखोरी, रिश्वत और बेईमानी हद से ज़यादा बढ़ रही है। कारण केवल एक................... बेरोज़गारी। हर हाथ को उसके लायक काम दो, सब समस्याएं अपने आप खत्म हो जाएँगी। यह जो गुंडा तत्व राज ठाकरे या नक्सलियों के साथ हैं सब अपने आप सही रास्तों पर लौट आयेंगे। यह युवक जो जगह जगह दंगा फसाद करते हैं, या तोड़ फोड़ करते हैं, उन्हें न तो राज ठाकरे से लेना देना है न ही मराठी भाषा से. अगर उनके पास करने को कोई काम होता , या उनकी कोई आर्थिक मजबूरिया न होती तो क्या वो इस तरह का काम करते। ये सब राजनेताओं की चालें हैं जो पता नही कितने युगों से चली आ रही हैं। ८० के दशक में हिन्दी फ़िल्म अर्जुन में भी यही विषय था और हालत आज भी जस के तस हैं . पाकिस्तान को क्यूँ दोष देते हैं जब की आप के अपने आदमी ही बेईमान हैं। अपने को सुधारिए पड़ोसी अपने आप सुधर जायेंगे। अगर आतंकवादी आए तो किसी बम्बई वासी की सहायता के बिना यह नामुमकिन था।
अगर आदिवासी इलाकों की तररकी बाकि देश के साथ होती तो नक्सलवाद भी न आता। । अगर राजनीती आज भी सेवा होती तो मधु कौड़ा जैसे मुख्यमंत्री न होते ।
ख़ुद को ईमानदार बनाईये लोग ख़ुद डरेंगे आपसे।
ये भी मान लेते हैं के पाकिस्तान हर तरह से हिंदुस्तान के पीछे हाथ धो कर पड़ा है। वो क्यूँ न पड़े? हमारा हर पड़ोसी मुल्क जानता है के हम आज भी संगठित नही इसलिए कभी चीन अरुणाचल पर तो कभी पाकिस्तान कश्मीर पर अपना अपना राग अलापते रहते हैं। जब हम अपने देश में ही सुरक्षित नही हैं तो दूसरे मुल्कों से क्यूँ कुछ अच्छे की आशा करें।




5 comments:

  1. Dear varun,
    observation of yours are well taken, the same views are doing rounds of most of the news discussions and newspaper editorials for some time. The problem with India is the weak leadership and lack of approach (which is too much diplomatically inclined). Another aspect is that till date this very SINO-PAK problem hasn't swelled to that proportion that it could be labelled as danger to our existence. Summing up, India thinks that we are not struggling for existence and hence the result. But the same condition exists for Israel (perhaps even more complex) as it is surrounded by all hostile nations and there is a question of their existence, and hence, they repent spontaneously.
    And one thing is very right, we are not honest and we (including me and you) are responsible for the plight of our country.
    with regards
    gds

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  2. you raised a real issue here,by pouring words direct from your heart ,&as gagan said,this is trauma of every concerned nationalist,...bt who is responsible for this traumatic situation?...,WE THE PEOPLE...We can not blame to anyone,...&there will no outcome of blame game, onlt solution is that people like you should gather,in organised way,...and start to awake people,..again we have to start sm thing like JANG-E-AZADI....ultimate power to change the situations always resides with PEOPLE, nt with scattered individuals...SANGATHAN SHAKTI IS ULTIMATE POWER,..and one who will start people to get united will called as REAL DESHBHAGAT
    subodh

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  3. Well, i shall say that even the headline of the topic was very convincing and weighing. you are a patriot and a good human too. take care. and keep it up. may god bless u dear

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  4. You have raised a very pertinent issue. There is always a difference between patriotism & jingoism. In case of Pakistan we are more jingoistic than patriot. we hate pakistan more on religious grounds rather than any other issue. our preoccupation with pakistan is hindering our growth as a superpower.
    A salaried employee who pays his taxes honestly is bigger DESHBAGAT then those who think singing Vandematram & Jan Gan Man makes them DESGBAGAT.

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  5. varun ji
    a fantasatic piece of narration
    keep it up

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