ILHAAM IS A WORD OF URDU ' WHICH MEANS GIFTED FROM ABOVE'. THIS BLOG CONTAINS THE ARTICLES DEALING WITH PROBLEMS OF COMMON MAN OF INDIA. I AM NOT A WRITER. EVERYTHING WRITTEN IN THIS BLOG IS AN 'ILHAAM' AND I THINK SOME ONE DESCENDS FROM ABOVE AND CONTROLS MY FINGERS AND PEN.
Wednesday, August 5, 2009
क्या आप भी कांवड़ ले जाना चाहते हैं
श्रावण मॉस शुरू होते ही आप को सब और एक ही रंग नज़र आता है , भगवा रंग। हर और ताड़क बम , बोल बम और हर हर महादेव के जयकारों की आवाज़ सुनाईदेती है। यह हैं हमारे कांवड़इए भाई जो बहुत दूर दूर से चल कर अपने नजदीकी धरम स्थान पर पहुँचते हैं जहाँ गंगा मैया बहती हैं। वहां की हर सड़क , हर चौराहा और हर धरमशाला इन के कब्जे में ही होती है। इन की एक खास पहचान है के इन्होने भगवे रंग के कपड़े पहने होते हैं ज़यादातर बरमूडा या निकर जिस पर एक और ब्रांड का नाम जैसे के आदिदास या नीके लिखा होता है और दूसरी और बोल बम जैसे जयकारे। यह एक लाइन में सड़क के बीचों बीच चलते हैं चाहे वोह कोई आम शहर की सड़क हो या नेशनल हाईवे। कुछ कहिये तो यह जान से मारने से भी नही हिचकेंगे। यह रोटी तो लंगर से खाते हैं पर नशा करने के लिए इनके पास काफ़ी पैसा होता है। आईपॉड पर गाने सुनते सुनते यह सड़क पर किसी हार्न या ट्रैफिक सिग्नल की परवाह न करते हुए कई किलोमीटर लंबा जाम लगा देते हैं। अगर यह कहीं खरीदारी करने चले जाएँ तो समझो की उस दूकानदार की तो शामत आ गई। उसकी दूकान में कुछ भी अनहोनी घटना हो सकती है। सड़कों पर चलते हुए यह किसी भी लड़की नही छोडेंगे। यानि की आप अपने परिवार के साथ इनके पास से भी गुज़रना नही चाहेंगे। यह लेख किसी की धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने का कोई मकसद नही रखता और न ही इसमें लिखे गए विचार हर कांवड़ वाले पर लागू होते हैं। यह एक विवरण है जैसा की हर साल हर और दिखाई देता है। अगर देखा जाए तो इन में आप को कुपोषित युवा वर्ग मिलेगा जो किसी न किसी बहाने से घर से निकलना चाहता है। ताकि वोह आराम से घर से बाहर रह कर कुछ दिन के लिए बिना रोक टोक के नशा कर सके। भक्ति की कोई सीमा नही होती और न ही उसका कोई ढंग। पर सरकार कोई चाहिए की हर बार होने वाले इस उत्पात से जनता को रहत दिलाये पर सरकार अपने पर जिम्मेदारी नही लेना चाहेगी क्यूँ की यह भी एक वोट बैंक है। अगर यह वोट बैंक की राजनीती न होती तो हम शायद कहीं और होते क्यूंकि अगर देखा जाए तो पूरे भारतवर्ष में अंदाज़न एक करोड़ आदमी कांवड़ ले के जाते हैं और अगर यह युवा वर्ग को कोई काम दिया जाए तो तरकी के साथ साथ अपराध के बड़ते ग्राफ पर भी लगाम लगेगी।
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Yes comments are good on these kavariyas
ReplyDeleteYou see varun, in india we have a big problem that in the name of religion everything (good as well as bad) is presumed to be true. This is the crux of all the comments you have tried to summarize. I also agree that these are actually the ill guided youth, desperate to go out of home. Gestalt is that it is necessary to change on the collective and individual level.
I appreciate your sensitivity on these issues (normally experts cease to comment on these type of social issues)
with regards
cheers
gds
waah...
ReplyDeleteIt's an appreciable attempt,indeed, to bring the rear and disguised face of an apparently cultural activity to light.It might bear something good and worthy but considering this aspect,it requires to be given a second thought too, before a dear one makes his mind to join it.
ReplyDeleteKeep it up Varun !
Very Great Sir,
ReplyDeleteYou have lighted up a serious topic to think about which is otherwise ignored.
Very Good...