पौराणिक आर्यों में खंड नीति लोकप्रिय थी. छोटी छोटी बातों पर आर्य अपने ही लोगों को बहिष्कृत करके दक्षिण अरण्य में भेज देते थे, यह बात रावण के लिए असहनीय थी. रावण सभी आर्यों , अनार्यों, किन्नरों , गन्धर्वो , नागों और मानवों को एक धर्म , एक संस्कृति यानि रक्ष संस्कृति में लाना चाहता था. इसी बात पर उसका देवो और दूसरी जातिओं से वैचारिक मतभेद था. अपनी रक्ष संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए रावण ने गहन तपस्या करके ब्रह्मा से अमरत्व ला वरदान लिया. इस के बाद रावण ने यज्ञ, तपस्या और अध्धयन से कई तरह की सिद्धियाँ और शक्तियां प्राप्त की जिसमे मल्ल युद्ध, इंद्रजाल , छद्म वेश धारण करना, अदृश्य होना आदि प्रमुख हैं. रावण एक उत्कृष्ट वीणा और मृदंग वादक था और उसके ध्वज पर वीणा की एक तस्वीर थी. रावण संस्कृत का महान ज्ञाता था. एक बार उसने भगवान रूद्र से लंका चल कर रहने के लिए कहा. रूद्र के मना करने पर उसने अपनी भुजाओं में कैलाश पर्वत को ही उठा लिया. जब भगवान रूद्र ने अपने पैर की छोटी उंगली से कैलाश को दबाया तो रावण चीत्कार कर भयानक रूदन करने लगा जिसके फलस्वरूप तीनो लोकों के प्राणी भी रूदन करने लगे और उस दिन से दशग्रीव/ दशानन रावण के नाम से प्रसिद्ध हुआ. रावण के नाम का शाब्दिक अर्थ है..............जो दूसरो जो रूदन के लिए विवश करे. कैलाश से दबने के बाद रूद्र को प्रसन्न करने के लिए रावण ने उसी समय 'शिव तांडव स्तोत्र' की रचना की. रावण अस्त्रों शस्त्रों का भी महान ज्ञाता था. रामायण में रावण की और से ब्रह्मास्त्र , नाग पाश, पशुपति अस्त्र, शिव त्रिशूल और चंदर हास खड़ग प्रयोग किये जाने का विवरण मिलता है. लंका पर स्थापित होने के बाद रावण अपनी क्षमताओं से प्रेरणा लेकर विश्व विजय अभियान पर निकला और जल्द ही वह दैत्यों का सर्वोच अधिपति बन गया. कई अनुष्ठान और बलिदानों के बाद रावण मानवो का भी सम्राट बना और त्रिलोकी में उसकी पूजा होने लगी. रामायण काल से भी कोई सौ साल पहले ही, रावण मनुष्यों और देवो पर हावी हों गया था .रावण द्वारा रचित उत्कृष्ट रचना 'रावण संहिता ' है जिसमे रावण ने आयुर्वेद , राजनीती और ज्योतिष विद्या के सिद्धांत प्रतिपादित किये. रावण संहिता आज भी वैदिक ज्योतिष में एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ माना जाता है.
सीता हरण के साथ ही रावण का पराभव शुरू हुआ. एक मत के अनुसार रावण द्वारा सीता हरण उचित था क्यूंकि राम और लक्ष्मण द्वारा स्त्री से स्त्रिओचित व्यवहार न करके हिंसा की गयी थी और अपनी भगिनी के अपमान के विरोधस्वरूप यह कार्य किया गया क्यूंकि राम जहां अपने बनवास के समय ठहरे थे वह रावण का ही एक उपनिवेश था जिसकी अधिष्ठात्री सूर्पनखा थी. सभी को ज्ञात है की रावण ने राम रावण संग्राम में पूरे शोर्य का प्रदर्शन किया और एक वीर की भांति वीरगति प्राप्त की. रावण की मृत्यु के साथ ही रक्ष संस्कृति ख़त्म हों गयी क्यूंकि युद्ध में लंका के सारे वीर मृत्यु प्राप्त कर चुके थे. रावण की मृत्यु के बाद , विभीषण ने आर्य धर्म स्वीकार किया और लंका के सिंहासन पर विराजमान हुए. पर विभीषण लंका में कटु दृष्टि से देखे जाते थे और कुल्द्रोही होने का कलंक उनके माथे पर था. वो इतने बड़े राज्य को सम्भाल नहीं पाए और लंका का सप्तद्वीप का राज्य केवल लंका तक ही सीमित हों कर रह गया. इसके बाद राम इस पृथ्वी के सम्राट घोषित हुए. सारी पृथ्वी के लोगों को वर्ण वयवस्था बना कर आर्य धर्म में दीक्षित किया गया और रावण के स्थान पर सर्वत्र राम की पूजा होने लगी.
रामायण में रावण के चरित्र पर सीता हरण के अतिरिक्त कोई धब्बा दिखाई नहीं देता. सीता हरण उचित था या अनुचित हम इस बहस में नहीं पड़ेंगे . पर रावण का चरित्र अपने आप में एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व है . रावण सब कलाओं में पारंगत और ज्ञानी था. जैन मत के अनुसार हर समय चक्र में बलदेव , वासुदेव (नारायणा) और प्रतिवसुदेव (विरोधी या विरोधी वासुदेव नायक) के नौ समूह होते हैं.. राम, लक्ष्मण और रावण आठवें बलदेव , वासुदेव, और प्रतिवसुदेव हैं. रामायण के जैन महाकाव्य में, अंततः लक्ष्मण रावण को मारता है . अंत में, राम, जो एक ईमानदार जीवन जीते हैं, राज्य त्याग के बाद , एक जैन साधु बन जाते हैं और मोक्ष पा लेते है.. दूसरी ओर, लक्ष्मण और रावण नरक में जाते हैं. हालांकि यह भविष्यवाणी भी है कि अंततः वे दोनों ईमानदार व्यक्ति के रूप में पुनर्जन्म लेंगे और उनके भविष्य के जन्म में मुक्ति प्राप्त हो जाएंगी. जैन ग्रंथों के अनुसार, रावण का भविष्य में जैन धर्म के तीर्थंकर के रूप में जन्म होगा. एक अन्य जैन काव्य , पद्मपुराण के अनुसार, रावण गैर आर्यन जाती का वंशज है जो की विद्याधर के नाम से जानी जाती थी और जो बेहद सुसंस्कृत और विद्वान लोग थे और जैन धर्म और अहिंसा अनुयायी थे . वे जानवरों के वैदिक यज्ञ में बलि देने का विरोध किया करते और अक्सर इस तरह के व्यवहार को रोकने की कोशिश भी करते थे . इसलिए, वे वैदिक अनुयायियो द्वारा राक्षस कहलाए गए. सब लेखकों ने रावण को अपने अपने धर्म के अनुसार चित्रित किया पर एक बात पर सब सहमत हैं और वह है रावण की विद्वता . रामायण में भी भगवान राम किसी न किसी रूप में रावण की विद्वता के कायल हैं. राम ने ही लक्षमण को रावण से नीति की शिक्षा लेने की लिए भेजा. तो फिर किस कारण रावण राक्षसत्व ढो रहा है? क्यूँ हमारे इतिहासकारों ने रावण के गुणों को आम आदमी पर ज़ाहिर नहीं होने दिया ? सामान्यतः कहा जाता है की पौराणिक राजा लेखकों से अपनी इच्छानुसार इतिहास लिखवाते थे. अगर यह सच है तो हों सकता है शायद इसी कारण सुग्रीव , अंगद और हनुमान जी भी आज तक वानरत्व ढो रहे हों .
(कुछ तथ्य इन्टरनेट और आचार्य चतुरसेन के उपन्यास 'वयं रक्षामः' के साभार एवं प्रेरित)